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Showing posts from April, 2013

रावन का सिर..

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बहुत साल पहले एक स्‍कूली छात्र ने रावण का ऐसा चित्र बनाया जिसमें उसके सिर एक के ऊपर एक लगे हुए थे। टीचर पहली बार में अचकचा गया, लेकिन उसने धैर्य रखा और छात्र को बुलाकर पूछा कि क्‍या तुमने रावण की तस्‍वीर नहीं देखी है। छात्र ने कहा देखी है। टीचर ने पूछा कि फिर तुमने सिर एक के ऊपर एक क्‍यों बनाए हैं। तो छात्र का जवाब था कि दाईं और बाईं और सिर बनाने से पहली गलती यह होती कि एक ओर चार सिर बनते और दूसरी तरफ पांच। इससे रावण कभी बैलेंस नहीं बना पाएगा और उसका सिर हमेशा एक ओर झुका रहेगा। व्‍यवहारिक तौर पर यह संभव नहीं है। टीचर खुश हुए। उन्‍होंने छात्र की और परीक्षा ली। पूछा और भी तो कोई विन्‍यास हो सकता था। इस पर छात्र ने कहा कि हां एक और विन्‍यास हो सकता है। अंगूर के गुच्‍छे की तरह। लेकिन इससे रावण हमेशा दृष्टिभ्रम का शिकार रहेगा। ऐसे में सिर ऊपर की ओर होने में न्‍यूनतम नुकसान की आशंका है। वैसे उसे बैलेंस बनाने में अब भी दिक्‍कत आएगी, शरीर की तुलना में अधिक भारी सिरों के बोझ के कारण... 

भरवा करेले ( प्रेशर कुकर मे)

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भरवा करेले ( प्रेशर कुकर मे) सामग्री: करेले- पाव किलोग्राम प्याज- एक बड़ा लहसुन- एक चम्मच( पेस्ट) हरी मिर्च- २-३ लाल मिर्च- आधा चम्मच हल्दी- आधा चम्मच पीसा धना- ४ चम्मच अमचूर पावडर- एक चौथाई चम्मच नमक- स्वादानुसार बेसन- २ चम्मच सौंप- आधी छोटी चम्मच राई- आधी छोटी चम्मच हींग- २ चुटकी चीनी- १ चम्मच गरम मसाला- आधा चम्मच तेल - ३ चम्मच विधि: सबसे पहले करेले के छिलके निकाल कर उन्हे अच्छी तरह साफ कर ले और बीच मे चाकू से चीर कर बीज निकाल ले. प्याज, लहसुन, हरी मिर्च को पीस कर पेस्ट बना ले. अब इस पेस्ट मे लाल मिर्च, हल्दी, पीसा धना, नमक, अमचूर पावडर, चीनी, हींग, सौंप, गरम मसाला, बेसन डाल कर अच्छे से मिक्स कर ले. करेले के बीच मे जहा से चीरा लगाया हे उसमे ये मसाला भर दे. कुछ मसाला बचा कर रख ले. अब कुकर मे तेल डाले और गरम होने पर राई जीरा डाल कर तड़काए. अब उसमे भरे हुए करेले डाल दे. बाकी का मसाला अभी नही डालना हे. प्रेशर कुकर की सिटी निकाल ले और ढक्कन लगा दे. अब धीमी आँच पर २-३ मिनट तक पकाए. थोड़ी देर मे करेले पक कर नरम हो जाएँगे अब कुकर का ढक्कन खोल कर बाकी बचा हुआ मसाला भी मिला दे और बिना ढक्कन लग...

मनुष्य कर्म क्यूँ करता हैं ?

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गीता में श्री कृष्ण ने कहा हैं "प्रकृति से उत्त्पन्न तीनो गुणों द्वारा परवश होकर मनुष्य कर्म करता हैं , वह क्षण मात्र भी बिना कर्म किये नहीं रह सकता ,गुण उस से करा लेते हैं .सो जाने पर भी कर्म बंद नहीं होता . ये तीन गुण हैं सत्व ,रज:और तम आइये जानते हैं इन तीनो गुणों से मनुष्य के शरीर में किस प्रकार के भाव उत्त्पन्न होते हैं ,और कर्म होता हैं :- १.सत्तोगुण :- सत्तोगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है (ईश्वरीय अनुभूति का नाम ज्ञान है) ,सत्तोगुण निर्मल है और जीवन में प्रकाश करने वाला है ।  सतोगुण बढ़ने पर इन्द्रियों मे चेतना जाग्रत होने लग जाती है, विवेकशक्ति अपने-आप ही आ जाती है । २.रजोगुण :-रजो गुण से संसारिक वस्तुओं में राग पैदा होता है । संसारिक वस्तुओं में आसक्ति पैदा होती है । इस गुण में कामना बलवती होती है । जिससे जीव कर्म करने को प्रेरित होता है और परिणाम स्वरूप फ़ल भी प्राप्त करता चला जाता है । इस गुण से प्रेरित होकर जीव हमेशा ही "कामना और चाहना" के चक्कर में फ़ंसा रहता है । संसारिक कार्यों के सिवाय और कुछ भी नज़र नही आता । ३.तमोगुण :- प्रमाद, आलस्य व निद्रा इसके फ...

मथुरा जी का जगु पंडा (कविता )

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 बचपन में बालहंस पत्रिका में पढ़ी थी याद आ गई मथुरा जी का जगु पंडा ,५५ लड्डू खाता , लग जावे जब होड़ तो रबड़ी ८ किलो पी जाता , ५२ इंच का तोंद का घेरा , ८ इन्च की चोटी, जिस दिन घर में रोटी खाता ,उस दिन घरवाली रोती .

प्रमाण पत्र -कहानी

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ये कहानी मुझे राजस्थानी भाषा में मुझे मेरे भुवा के लड़के ने काफी साल पहले सुनाई थी ,उसी का हिंदी अनुवाद कर के प्रस्तुत कर रहा हूँ ,उम्मीद हैं आपको पसंद आएगी . एक गीदड़ भूख और प्यास से परेशान भटकते भटकतें जंगल से बाहर एक गाँव में आ गया .गाँव में घुसते ही उसे एक कागज का टुकड़ा दिखाई दिया ,जिस पर थोड़ी बहुत मिठाई लगी हुई थी ,उसको अच्छी तरह से चाटने के बाद भी मीठा होने की वजह से उसने उसको मुंह में दबाये रखा और आगे बढ़ गया . गाँव के कुत्तों को खाने पाने की कोई समस्या नहीं थी इसलिए वे डटकर खाने के बाद दोपहर की गर्मी में आराम से सो रहे थे .गीदड़ एक बार कुत्तो को देख कर रुका ,लेकिन उसने देखा कि कोई कुत्ता उसकी तरफ नहीं देख रहा हैं ,वो हिम्मत करके पुरे गाँव में घूम आया ,किसी ने उसको रोका नहीं ,अच्छी तरह से पेट भर जाने से वो काफी खुश था और अब उसका दिमाग भी चलने लगा . उसने सोचा की ये जो "कागज " का टुकड़ा हैं ये जरुर कोई " प्रमाण पत्र "हैं इसलिए तो कूत्तो ने डर के मारे मेरी तरफ देखा तक नहीं . एसा सोचते सोचते वो अपने भाई बंधुओं के पास लौट आया ,उसे खुश  देखकर दुसरो ने पुछा "भाई ब...

जिज्ञासा नास्तिकता नहीं हैं .

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मैं शुरू से ही जिज्ञासु रहा हूँ ,हर विषय के बारे में जानने की जिज्ञासा रही हैं ,धर्म और अध्यातम के क्षेत्र में मैं जिनसे मिला उसमे से कई लोग मुझे नास्तिक समझते हैं ,जबकि ऐसा हैं नहीं . किसी ने ये नहीं कहा कि तुम प्रश्न करो तब तक करो जब तक शंका दूर न हो ,किसी ने कह दिया जाओ गीता पढ़ लो ,किसी ने कह दिया तुम कुतर्की हो व्यर्थ उलटे सीधे तर्क करते हो ,किसी ने कह दिया अरे तुम तो महापुरुषों की बातों का खंडन करते हो घोर नरक में जाओगे . मैंने उनसे पूछ लिया महाराज कम से कम नरक तक तो पहुंचा दो अगर आप उसके बारे में जानते हो तो:)  जिन लोगो ने वेद ,पुराण और गीता पढने की सलाह दी उन्हें ये बात क्यूँ समझ नहीं आई की ये ग्रन्थ परस्पर संवाद के आधार पर ही बने हैं . गीता तो पूरी तरह से अर्जुन द्वारा किये गए प्रश्नों का कृष्ण द्वारा  उत्तर हैं ,असली समस्या दूसरी हैं ,जो लोग धर्म के ठेकेदार बने हैं उनका खुद का कोई निजी अनुभव आत्मा ,और इश्वर जेसे विषयों में नहीं हैं ,इसलिए वो ऐसे प्रश्नों का उत्तर देने से घबराते हैं . जो खुद प्रकाशित हो चूका हैं उसी में दुसरो को प्रकाश देने का सामर्थ्य होता हैं . भारत...

पीपल का पेड़ और शैतानी आत्माएं

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जिस पेड़ का मैं जिक्र कर रहा हूँ वो मेरे घर के सामने ही हैं ,मुझे उस के बारें में लिखने में बड़ा गर्व महसूस होता हैं क्यूँ कि उसने बहुत संघर्ष किया हैं जिन्दा रहने के लिए । कहानी शुरू होती हैं जब हम सातवी क्लास मैं पढ़ते थे ,इश्वर कृपा से हमारे स्कूल में एक ऐसे हेडमास्टर आये जो संस्कृत के विद्वान ,प्रकृति प्रेमी और एक सच्चे शिक्षक थे ,उनकी प्रेरणा से हमने पोधे लगाने शुरू किये . हमारे घर के सामने ईंटो की सुरक्षा के बीच में हमने उस पीपल के पौधे  को लगा दिया ,सब बच्चो को चिंता रहती थी कि कंही ये बेचारा प्यासा न रह जाए इसलिए उसको दिन में जब भी मौका मिलता पानी डाल देते  थे। वो पीपल का पौधा हमारी दिनचर्या का हिस्सा हो गया था ,स्कूल जाते आते उस से हाल चाल जरुर पूछे जाते । हमारा गाँव रेगिस्तान में हैं और यंहा खेजड़ी और बबूल के अलावा दुसरे वृक्ष नहीं थे ,वन विभाग द्वारा नयी किस्मो के पोधो के वितरण कार्यक्रम के तहत वो पीपल हमारे हत्थे चढ़ गया था ,इस प्रकार वो गाँव का इकलोता पीपल का पेड़ हो गया था । समय के साथ पौधा पेड़ बन गया ,और लोग उसकी पूजा भी करने लग गए ,मुझे भी पढाई के लिए गाँव छोड़ना पड़ा ...

मनुष्य का स्वभाव क्या चीज़ हैं ?

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हर प्राणी का ,हर व्यक्ति का,हर परिवार का ,हर जाती का समाज का ,राष्ट का और युग का   स्वभाव अलग हैं । यह स्वभाव बनता कैसे हैं ?यह जानना जरुरी हैं क्यूँ कि स्वभाव आसानी से बदलता नहीं ,कभी कभी ये मनुष्य की इच्छाशक्ति को भी परास्त   कर देता हैं ,मनुष्य लाचार हो के स्वभाव के वश में हो जाता हैं। यह स्वभाव आप ही आप नहीं बनता यह बनते बनते बनता हैं ,इसलिए ये इतना मजबूत हो जाता हैं ,एसा भी नहीं की स्वभाव को बदला नहीं जा सकता ,प्रयत्न और अनुभव से इसमें थोडा बहुत परिवर्तन किया जा सकता हैं। कुछेक घटनाओं को छोड़ दे तो ऐसे उदहारण कम ही मिलते हैं की किसी व्यक्ति का समस्त स्वभाव एक दम बदल गया हो ,हमारे स्वभाव में कभी कभी क्रांति भी होती हैं लेकिन अगर अनुकूलता न मिले तो मनुष्य फिर पुराने स्वभाव की और फिसल जाता हैं। तत्वज्ञ कहते हैं की हमारे स्वभाव का प्रारम्भ हमारे जन्म से पहले शुरू हो जाता हैं ,मा बाप का स्वभाव ,कुल ,परम्परा और आस पास की परम्परागत परिस्थति इन सब बातों से जो संस्कार हमे मिलते हैं ये ही हमारे स्वभाव का निर्धारण करने वाले मूल तत्व हैं। तत्वदर्शी तो पूर्व जन्मो के अनुभव और संस्कारों...

कृष्ण की रास लीला क्या थी ?

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इस पोस्ट में मैं कृष्ण की रासलीला के सम्बन्ध में प्रकाश डालना चाहता हूँ ,कृष्ण के अस्तित्व को ठुकराया नहीं जा सकता क्यूँ की जितने भी स्थानो का वर्णन कृष्ण से सम्बन्धित ग्रंथो में किया गया उन सब के प्रमाण मिलते ही हैं। कृष्ण इश्वर का अवतार थे या मनुष्य ये एक अलग मुद्दा हैं ,परन्तु इस बात में कोई संदेह नहीं की वे एक कुशल राजनीतिज्ञ ,वक्ता ,राजा  ,योगी ,योद्धा और बुद्धिमान व्यक्ति थे। आमतौर लोग अपने प्रेम प्रसंग की बात चलने पर कह देते हे की ऐसा तो कृष्ण भी करते थे तो हम क्यूँ न करें , कृष्ण क्या करते थे उसे समझने के लिये पहली बात की उस समय कृष्ण की आयु क्या थी ? इतिहासकारों के अनुसार कृष्ण ने जब कंस का वध किया तो  उनकी आयु १३ से १४ वर्ष की थी कुछ इतिहासकार ९से १० वर्ष की आयु भी मानते हैं ,आज के ज़माने में बच्चे भले ही टीवी देखकर एडवांस हो गए हो मगर जो ये पोस्ट पढ़ रहे हैं उनमे कई लोग मानते होंगे कि ज्यादा समय नहीं हुवा जब  १५/१६ वर्ष की आयु तक के बच्चे नेकर में ही स्कूल जाते थे । तो क्या कृष्ण का १२/१३ साल की उम्र में अपने से बड़ी गोपियों के साथ खेलना संदेह की दृष्टि में आता है...

अध्यातम और धर्म में क्या फर्क हैं ?

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दिलीप कुमार सोनी मेरे अनुसार अध्यातम और धर्म का मुख्य अंतर ये हैं अध्यातम :-अपनी आत्मा का अध्ययन करना ,और प्राप्त हुवे अनुभव के आधार पर अपने जीवन ,दर्शन और सोच को विकसित करना । धर्म :- किसी दुसरे के द्वारा स्थापित विचारो को मजबूती देने के लिए अपनी सोच को सीमित करना ,गलत लगते हुवे भी उस कार्य का समर्थन करना क्यूँ की धर्म ये कहता हैं । मेरे विचार से मनुष्य को अध्यात्मिक होना चाहिए ,धार्मिक होना या न होना उसकी अपनी पसंद हैं । अध्यात्मिक होने का सबसे बड़ा फायदा ये हैं कि ये आपको उन प्रपंचो सेबचाये रखता हैं जो धार्मिक लोग करते रहते हैं बिना किसी कारणवश ,अध्यातम से आप बिना किसी पूर्वाग्रह के मानवता की सेवा कर सकते हैं  धर्म आपको इसकी इजाजत कभी  नही देता  ,मैं नास्तिक नहीं हूँ पर क्यूँ की अभी मेने इश्वर को देखा या प्राप्त नहीं किया हे इसलिए ये भी नहीं कहूँगा की जो कुछ लोग कह रहे हे या कहते आये वो सत्य हैं या पूर्णतया असत्य हैं ,मेने भी धर्म के अनुसार जीने का थोडा प्रयास किया और उस से जो अनुभव हुवा उसने मेरा रुख अध्यातम की और मोड़ दिया ,पर अभी भी मैं विज्ञानं के पक्ष में ज्यादा हू...

बहुत लिखना है पर क्या करू ?

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इन्टरनेट के आने से एक बात तो अच्छी हो गई हैं ,आप को लेखक बनने से कोई नहीं रोक सकता ,इतने अच्छे अवसर को हाथ से गंवाना उचित नहीं समझा इसलिए झट से ये ब्लोग बना डाला । परन्तु लिखना इतना आसान कन्हा होता हैं ,मन की सोच को शब्दों में ढालना मुझे तो बहुत कठिन लगता हैं ,फिर भी हिम्मत करके शुरुआत तो कर डाली हैं । मित्रों आपसे अनुरोध हैं की हिंदी से सम्बन्धित त्रुटियों के लिए मेरी आलोचना मत करियेगा क्यूँ की मेने हिंदी के क्षेत्र में कोई विशेष डिग्री नहीं ले रखी हैं  ,जेसी बोलता हूँ वेसी ही लिख रहा हूँ । पहली पोस्ट लिखना उतना ही कठिन हे जितना की पहला प्रेम पत्र ,जगजीत सिंह की ये गजल"प्यार का पहला ख़त लिखने में वक्त तो लगता हैं " जब सुनी थी तो समझ नहीं आया की इतना वक्त क्यूँ लगता हैं ,आज समझ आ रहा हैं की वक्त क्यूँ लगता हैं :) हालाँकि इस से पहले तकनिकी विषयों पर  काफी सालों से लिख रहा हूँ पर उसमें  कोई जोर नहीं पड़ता ,वो भाव विहीन लेखन होता हैं । शायद मैं पहले भी लिखना शुरू कर सकता था ,पर तब एक भय था की इतने बड़े बड़े लेखकों के बीच लिखते समय कोई गलती हुई तो बहुत आलोचना होगी ,पर अब उस बात क...