मनुष्य कर्म क्यूँ करता हैं ?

गीता में श्री कृष्ण ने कहा हैं "प्रकृति से उत्त्पन्न तीनो गुणों द्वारा परवश होकर मनुष्य कर्म करता हैं ,वह क्षण मात्र भी बिना कर्म किये नहीं रह सकता ,गुण उस से करा लेते हैं .सो जाने पर भी कर्म बंद नहीं होता .
ये तीन गुण हैं सत्व ,रज:और तम आइये जानते हैं इन तीनो गुणों से मनुष्य के शरीर में किस प्रकार के भाव उत्त्पन्न होते हैं ,और कर्म होता हैं :-
१.सत्तोगुण :- सत्तोगुण से ज्ञान उत्पन्न होता है (ईश्वरीय अनुभूति का नाम ज्ञान है) ,सत्तोगुण निर्मल है और जीवन में प्रकाश करने वाला है ।  सतोगुण बढ़ने पर इन्द्रियों मे चेतना जाग्रत होने लग जाती है, विवेकशक्ति अपने-आप ही आ जाती है ।
२.रजोगुण :-रजो गुण से संसारिक वस्तुओं में राग पैदा होता है । संसारिक वस्तुओं में आसक्ति पैदा होती है । इस गुण में कामना बलवती होती है । जिससे जीव कर्म करने को प्रेरित होता है और परिणाम स्वरूप फ़ल भी प्राप्त करता चला जाता है । इस गुण से प्रेरित होकर जीव हमेशा ही "कामना और चाहना" के चक्कर में फ़ंसा रहता है । संसारिक कार्यों के सिवाय और कुछ भी नज़र नही आता ।
३.तमोगुण :- प्रमाद, आलस्य व निद्रा इसके फ़ल है । त्तमोगुण में ज्ञान अज्ञान के द्वारा ढका हुआ होता है । व्यर्थ चिन्तन, व्यर्थ चेष्टा अपने कर्तव्य कर्मों से दूर भागना, बेगैर सोचे समझे बोलना और बिना सोचे कोई भी कार्य कर देना यह त्तमोगुणी व्यक्ति के लक्षण है ।
ये तीनो गुण हर मनुष्य में रहते ही हैं ,यही गुण इस प्रकृति में भी विधमान हैं ,परस्पर इनमे आपस में ऊपर उठने की होड़ मची रहती हैं ,मनुष्य का खान पान ,आसपास का वातावरण इन तीनो गुणों पर असर डालता हैं ,जिस गुण को अनुकूल वातावरण मिलता हैं उसका असर मनुष्य के स्वभाव और कार्यो में द्रष्टिगोचर होता हैं .
ध्यान द्वारा और योग साधना से सत्व गुण को प्रबल कर दिया जाए तो मनुष्य में व्यापक वृति परिवर्तन देखने को मिलता हैं .


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