पीपल का पेड़ और शैतानी आत्माएं

जिस पेड़ का मैं जिक्र कर रहा हूँ वो मेरे घर के सामने ही हैं ,मुझे उस के बारें में लिखने में बड़ा गर्व महसूस होता हैं क्यूँ कि उसने बहुत संघर्ष किया हैं जिन्दा रहने के लिए ।
कहानी शुरू होती हैं जब हम सातवी क्लास मैं पढ़ते थे ,इश्वर कृपा से हमारे स्कूल में एक ऐसे हेडमास्टर आये जो संस्कृत के विद्वान ,प्रकृति प्रेमी और एक सच्चे शिक्षक थे ,उनकी प्रेरणा से हमने पोधे लगाने शुरू किये .
हमारे घर के सामने ईंटो की सुरक्षा के बीच में हमने उस पीपल के पौधे  को लगा दिया ,सब बच्चो को चिंता रहती थी कि कंही ये बेचारा प्यासा न रह जाए इसलिए उसको दिन में जब भी मौका मिलता पानी डाल देते  थे।
वो पीपल का पौधा हमारी दिनचर्या का हिस्सा हो गया था ,स्कूल जाते आते उस से हाल चाल जरुर पूछे जाते ।
हमारा गाँव रेगिस्तान में हैं और यंहा खेजड़ी और बबूल के अलावा दुसरे वृक्ष नहीं थे ,वन विभाग द्वारा नयी किस्मो के पोधो के वितरण कार्यक्रम के तहत वो पीपल हमारे हत्थे चढ़ गया था ,इस प्रकार वो गाँव का इकलोता पीपल का पेड़ हो गया था ।
समय के साथ पौधा पेड़ बन गया ,और लोग उसकी पूजा भी करने लग गए ,मुझे भी पढाई के लिए गाँव छोड़ना पड़ा ।
सब कुछ सही चल रहा था ,अचानक हमारी गली में रहने वाले एक सेठ जी को दिल का दौरा पड़ा ,उनका घर पीपल के सामने ही था ,डॉक्टर के इलाज़ के साथ साथ झाड फूंक ,टोन टोटके ,ज्योतिष वाले कार्यक्रम भी शुरू हो गए ,इसी चक्कर में एक महान ज्योतिषी पधारें , उनको वो पेड़ दिख गया और उनके वारे न्यारे हो गए ,झट से बोल पड़े ,सारी समस्या की जड़ ये पेड़ हैं ,इसमें शैतानी आत्माएं रहती हैं जिन्होंने ये सब किया हैं ,इस पेड़ को कटवा दो सब ठीक हो जाएगा ।
उस पेड़ को काटने की पूरी तैयारी करदी गयी ,मजदूरों को भी बुला लिया गया लेकिन उन्होंने पीपल का पेड़ काटने से मना कर दिया क्यूँ की उन्होंने सुन रखा था की इसमें विष्णु भगवान् रहते हैं ।

अब उस पेड़ को केसे हटाया जाएँ ,इसके लिए नया तरीका खोजा गया पेड़ को आस पास से खुदाई कर दो तेज़ हवा आएगी तो अपने आप गिर जाएगा और पेड़ काटने का पाप भी नहीं लगेगा ।

मैं उन दिनों गाँव वापस आ गया था और मेने इस सारे घटना क्रम का विरोध किया पर मेरी चली नहीं और उन्होंने वही किया जो वो चाहते थे ।

अब जिस दिन आंधी आती उस दिन दो चीज़े होती वे लोग खुश  होते की आज ये गिर जाएगा ,मेरा मन व्याकुल होने लगता हालाँकि मेरे लिए उस पेड़ का कोई धार्मिक महत्व  नहीं था पर मुझे उसके फायदे नजर आते थे ।

जब भी हवा के थपेड़े तेज़ होते वो लोग खुश  होते की अब गया अब गया ,मगर वो पेड़ बहुत जिद्दी था उसने एक नयी योजना बना ली थी  ,उसने अपनी टहनियों की वृद्धि बंद कर दी ताकि ऊपर का बोझ कम हो जाए ,आश्चर्यजनक रूप से उसके तने का आकार मोटा होने लगा .उसने अपनी जड़े हमारी गली के सभी घरो के पानी के टांकों तक फैला दी थी मुझे अहसास हो गया था कि उस पेड़ ने अपनी जिन्दगी की जंग जीत ली थी ,मैं बहुत खुश  था ।

अब वो एक विशाल वृक्ष का रूप ले चुका  हैं ,उसकी छाँव में गायें बैठती हैं ,टहनियों पर पक्षी कलरव करते हैं ,लोगो का भी टोना टोटका ,धार्मिक कार्यक्रम जारी हैं ,अब उन लोगो का मन भी बदल चूका  हैं वो भी मानते हैं की जरुर इस पेड़ में कोई शक्ति हे जो ये गिरा नहीं और इसकी नियमित पूजा करते हैं ।

अब तो मेरे गाँव में काफी पीपल के पेड़ हो गए पर उन सबका हीरो मेरे घर के सामने वाला पेड़ ही हैं क्यूँ कि उसने संघर्ष किया हैं ।~दिलीप कुमार सोनी

Comments

  1. संघर्ष करने के बाद जब हम उपर उठते है तो गिरने का चांस कम हो जाता है.

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  2. दिलीप जी यह लेख शायद बहुत लोगों के लिये प्रेरणादायी होगा वास्‍तव में संघर्ष से ही जीवन में कुछ किया जा सकता है बशर्ते वह संघर्ष किस दिशा में किया जा रहा हो यह उस पर निर्भर करता है
    मैं आपकी तरह तो नहीं लिख सकता फिर भी समय मिले तो मेरा ब्‍लाग भी देख लीजियेगा
    अब आपकी ऑखों के इशारे पर चलेगा आपका कम्‍प्‍यूटर
    हार्डडिस्क में स्टोर होगा 1 अरब जी0बी0 डाटा
    इसी प्रकार के कुछ अन्य रोचक लेखों को पढने तथा कुछ नया जानने के लिये अभी क्लिक कीजिये

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    1. अभिमन्यु जी ,बहुत से लोग हे जो विपरीत परिस्थतियों में हिम्मत हार जाते हैं ,मुश्किल परिस्थतियों में भी हम प्रकृति से प्रेरणा ले सकते हैं ,आपका ब्लॉग भी जरुर देखेंगे .

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  3. मुश्किलें इतनी आयी कि सब आसान हो गया गया.

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    1. सही कहा दीपक जी ,जिन्दा तो रहना ही था

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  4. नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
    पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!



    पीपल के पेड़ का संघर्ष बहुत रोचक है
    प्रिय बंधुवर दिलीप जी !
    ...साथ ही भावपूर्ण भी !

    मुझे स्मरण हो आया ,जब प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ने के दौर में
    बरसात के दिनों में गली-मौहल्ले में , किन्हीं कोनों में अपने आप उग आई नन्ही कोंपलों से भी लगाव हो जाता था । ...आपने तो स्वयं पौधे को पेड़ बनाया था , मन जुड़ जाना स्वाभाविक ही है ।
    सुंदर पोस्ट के लिए आभार ! साधुवाद !


    आपको सपरिवार नव संवत्सर २०७० की बहुत बहुत बधाई !
    हार्दिक शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं...

    -राजेन्द्र स्वर्णकार


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  5. राजेंद्र जी ,प्रकृति जीवन दायनी हैं ,इसका सरंक्षण और संवर्धन जरुरी हैं ,मैंने आपकी फेसबुक पे एक प्रश्न किया था जिसका जवाब आपने नहीं दिया ,आप राजस्थानी भाषा के साहित्यकार मूलचंद "प्राणेश" के सम्बन्ध में कुछ जानकारी दे सकते हैं ?

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  6. बिलकुल अच्छा हुआ..इसी लिए कहा गया है की पेड़ में भी जीवन है शायद वो भी अहसास करते है उनके साथ क्या हो रहा है ...सुना है विदेशो में शोध भी हुए है संगीत से पेड़ पोधों में असाधारण बृद्धि देखि गई

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  7. दिलीप जी सुंदर रचना है आपकी, प्रकृति का प्रेमी हू इसलिए आपकी पीड़ा समझता हू...

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    1. प्रवीण जी ,उस समय मैं छोटा था ,आज की बात और हैं अब तो में विराध करने में समर्थ हूँ .

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  8. विपरीत परिस्थति में जो आगे निकल जाता है ... उसे रोकना संभव नहीं होता ...
    बहुत ही प्रेरणा देता है आपका लिखा ...

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    1. दिगम्बर जी ,आपका बहुत आभार की आपने समय देकर मेरा पढ़ा लिखा ,आप अच्छी कवितायेँ लिखते हैं .

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  9. very nice and inspirational message.

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  10. एक पेड़ की रक्षा के लिये आपको धन्यवाद तो बनता ही है!

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  11. mere vichar she yah shi h ki pipal me kuch too hot a h tabhi too log esko pujate hain

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