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Showing posts from November, 2019

मौर्य, नन्द और गुप्त सबसे अधिक शक्तिशाली राजवंश उच्च जातियों से नहीं थे ...

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चलिए अब राजनीति से थोड़ा आगे बढ़ते हुए राष्ट्रनीति पर ध्यान देते हैं । हमारा संविधान बताता है कि सभी भारतीय एक बराबर हैं और फिर उसी में थोड़ा आगे जा कर दलित और अल्प-संख्यक जैसे शब्दों का प्रयोग हो जाता है । अब साधारण शब्दों में कहूँ तो हमारा संविधान ही हमें एक  बराबर नहीं मानता ।  जब आपने कह दिया कि सभी एक बराबर हैं तो फिर अलग से दलित और अल्प-संख्यक शब्द लिखने की आवश्यकता ही क्या थी ? मतलब आपने उसके पहले जो कुछ लिखा है आपको खुद में उस पर विश्वास नहीं है कि उसका पालन होगा । यही ना ? अच्छा ! ये जो दलित शब्द है देखने पर बड़ा ही सामाजिक शब्द दिखाई पड़ता है लेकिन वास्तव में ये पूर्णतया राजनीतिक शब्द है ।  भारत की जाति व्यवस्था के विषय में एक टिप्पणी पढ़ी थी मैंने । किसी विदेशी की टिप्पणी थी । कि ‘भारत में नीच से नीच जाति भी अपने से नीच जाति खोज लेती है’ ।  व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि ना तो कोई जाति नीची होती है और ना कोई ऊंची । सबका अपना-अपना काम है । और यही जाति-व्यवस्था के मूल में था । एक उदाहरण से समझते हैं । मान लीजिए आपके क्षेत्र में नाली की सफाई करने वाले कर्मचारियो...

सरकारी नौकरियाँ से दलितों का उत्थान .... ?

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दलित शब्द के साथ ही एक और शब्द आ जाता है और वो है आरक्षण ! पिछड़े हुए लोगों को हमेशा के लिए पिछड़ा बना देने वाली साजिश ! मैं जानती हूँ आपको मेरी इस बात से गम्भीर आपत्ति होगी । इसीलिए मैं चाहती हूँ कि एक बार आप इस आरक्षण का ध्यान से विश्लेषण करें । एक उदाहरण से इस मुद्दे को शुरू करते हैं । मैं जब कॉलेज में पहुंची तो कॉलेज प्रवेश परीक्षा में मेरे अंक थे 606 / 900 । मेरे साथ मेरे ही क्लास में एक और लड़का था उसके प्रवेश परीक्षा में कुल अंक थे 50 / 900 । जबकि उसी दौर में सामान्य श्रेणी के हजारों छात्र ऐसे रहे होंगे जिन्होंने 50 से कहीं अधिक अंक लाए लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं मिला । मैं जानती हूँ कि अभी आप इमोश्नल बातें करेंगे कि दलितों पर हजारों वर्षों से अत्याचार हो रहे हैं आज भी हो रहे हैं । बहुत सारी बातें ! मैं एकदम सहमत हूँ कि आप पर बहुत अत्याचार हुआ है । आज भी हो रहा है । सब मान लिया । यह भी मान लिया कि उसे ऐसी कोई कोचिंग की सुविधा नहीं मिली जो दूसरे बच्चों को मिली । लेकिन ! क्या आपको यह नहीं लगता कि यह अयोग्यता पर योग्यता का ठप्पा लगा देने जैसा है ? क्या आपको वाकई यह लगता है कि 900 में 50...

कार्तवीर्य नाम राजा बाहु सहस्रवान ....

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अकसर हिन्दू जन ने भगवान कार्तवीर्य सहस्रार्जुन का नाम केवल भगवानपरशुराम और उनके बीच होने वाले युद्ध के लिये सुना है और रही सही कसर आजकल के खासतौर से यूपी बिहार के हिन्दुओ के डीएनए मे घुली जातिवादिता के कारण यूपी बिहार के ब्राह्मण युवाओ के "जय परशुराम" के नारे की मूल कथा के विलेन के रूप मे जानते हैं| रही सही कसर हरियाणे के "जय दादा परसुराम "गैंग करे दे रही है| पर यह  कथा इन उपरोक्त अति मूर्खताओ के अलावा बहुत कुछ है चन्द्र वंशीय कृतवीर्य के सुयोग्य पुत्र होने से कार्तवीर्य कहलाये गये अर्जुन जो अपने सहस्र नौकादल के कारण सहस्रभुजा धारी माने गये और "कार्तवीर्य सहस्रार्जुन " कहलाये भारतीय सनातन मे आठ राजन्यो को मानक कहा गया है मतलब ये की उनके राज्य मे शासन व्यवस्था बिलकुल चाकचौबंद रहती थी ,प्रजा प्रसन्न और तुष्ट , कर न्युनतम, डाकू चोर का दमन और शत्रु का मर्दन ये सब गुण रहते थे इनके शासन का पैमाना बहुत पहले दतिया के संस्कृत गुरूकुल के एक छात्र से सुना था संस्कृत श्लोक केरूप मे जिसका अर्थ था की जहां एक पूर्णयौवना नारी रत्नाभूषणो से लदी हुई हो वह आधीरात मे विजन वन ...