मौर्य, नन्द और गुप्त सबसे अधिक शक्तिशाली राजवंश उच्च जातियों से नहीं थे ...

चलिए अब राजनीति से थोड़ा आगे बढ़ते हुए राष्ट्रनीति पर ध्यान देते हैं ।
हमारा संविधान बताता है कि सभी भारतीय एक बराबर हैं और फिर उसी में थोड़ा आगे जा कर दलित और अल्प-संख्यक जैसे शब्दों का प्रयोग हो जाता है ।
अब साधारण शब्दों में कहूँ तो हमारा संविधान ही हमें एक बराबर नहीं मानता । जब आपने कह दिया कि सभी एक बराबर हैं तो फिर अलग से दलित और अल्प-संख्यक शब्द लिखने की आवश्यकता ही क्या थी ?
मतलब आपने उसके पहले जो कुछ लिखा है आपको खुद में उस पर विश्वास नहीं है कि उसका पालन होगा । यही ना ?
अच्छा ! ये जो दलित शब्द है देखने पर बड़ा ही सामाजिक शब्द दिखाई पड़ता है लेकिन वास्तव में ये पूर्णतया राजनीतिक शब्द है । भारत की जाति व्यवस्था के विषय में एक टिप्पणी पढ़ी थी मैंने । किसी विदेशी की टिप्पणी थी । कि ‘भारत में नीच से नीच जाति भी अपने से नीच जाति खोज लेती है’ । व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि ना तो कोई जाति नीची होती है और ना कोई ऊंची । सबका अपना-अपना काम है । और यही जाति-व्यवस्था के मूल में था ।
एक उदाहरण से समझते हैं । मान लीजिए आपके क्षेत्र में नाली की सफाई करने वाले कर्मचारियों ने काम करना बंद कर दिया । अब ? आप कितने भी पढ़े-लिखे ऊंचे ओहदेधारी हो आपको सब काम छोड़कर खुद नाली की सफाई करने उतरना पड़ेगा नहीं तो आप और आपका परिवार बहुत जल्दी बीमार पड़ जाएगा ।
तो क्या वो नाली साफ करने वाले कर्मचारी नीची जाति के हुए ?
जाति का निर्धारण तो जाति के काम से होता है ना ? और आपने मान लिया था कि उसका काम तो छोटा काम है कम महत्व का काम है और जैसे ही उसने काम बंद कर दिया ?
एक झटके में आपको समझ आ जाता है कि उसका काम कितना महत्वपूर्ण है इतना कि आपको सभी दूसरे काम छोड़कर सबसे पहले वही काम करना पड़ता है ।
खैर !
व्यवहार में तो हम लोग मान ही रहे हैं ऊंची जाति नीची जाति ।
लेकिन ये दलित शब्द बड़ा कमाल का है ।
पता नहीं ये शब्द कहाँ से आया । इतिहास में साधारणतया मुझे यह शब्द देखने को नहीं मिलता ।
अब इन लोगों ने दलित में भी विभाजन कर दिया । जैसे राजा के बाद महाराजा शब्द की उत्पत्ति हुई वैसे ही दलित के आगे महा-दलित शब्द की उत्पत्ति हो गई ।
हो सकता है आने वाले समय में हम लोग और ऐसे नए-नए शब्द देखें ।
पहले होड़ लगी होती थी खुद को श्रेष्ठ सिद्ध करने की अब होड़ लगी होती है खुद को पिछड़ा सिद्ध करने की ।
मेरी जाति अधिक पिछड़ी हुई है । अरे नहीं ! मेरी जाति अधिक पिछड़ी हुई है !
कहाँ जा रहे हैं हम ?
ऐसे देश आगे बढ़ेगा ? जहां हर कोई खुद को पिछड़ा हुआ सिद्ध करने में लगा हुआ है ? और खुद को पिछड़ा हुआ सिद्ध करने के लिए हम तोड़-फोड़ करते हैं बस जला देते हैं रेल ट्रैक उखाड़ देते हैं । और ऐसा करके हम यह सर्टिफिकेट पाने का प्रयास कर रहे होते हैं कि हमारी जाति कमजोर है !
अजीब नहीं लगता ??? अच्छा ! दलित शब्द की इनकी कोई स्पष्ट व्याख्या नहीं है । इसमें ये लोग, यदि हम आर्य – अनार्य के भेद को मानें और आर्यों के वर्ण-व्यवस्था को मानें, तो इनके हिसाब से शूद्र और अनार्य दोनों ही दलितों की श्रेणी में हैं ।
मजे की बात तो ये है कि कुछ नेता या तथाकथित बुद्धिजीवी ये कहते दिखाई पड़ जाते हैं कि आर्यों की जाति व्यवस्था के कारण आदिवासी समाज का हजारों वर्षों से शोषण हो रहा है । और उसके बाद आर्य विदेशी हैं के नारे भी लगा दिए जाते हैं !
मुझे आज तक समझ नहीं आया कि आर्यों की वर्ण-व्यवस्था के तहत अनार्यों का शोषण कैसे हो गया ?
भाई मेरे जो भी उस वर्ण-व्यवस्था के तहत आ रहा है वो आर्य ही है अनार्य तो नहीं ही है ना ? तो जो आर्य है ही नहीं उस पर आर्यों की वर्ण-व्यवस्था कैसे लागू हो गई जिसके तहत आपने उन अनार्यों का शोषण हुआ यह भी मान लिया ?
फिर आप ऊंची जाति नीची जाति का विभेद कर एक ज़हर घोल रहे होते हो समाज में कि हजारों सालों से ऊंची जाति वालों ने नीची जाति वालों का शोषण किया ।
चलिए ! इसे एक बार परख कर देखा जाए !
प्राचीन भारत का इतिहास उठाकर देखिए और उसके सबसे शक्तिशाली तीन राजवंशों के नाम खोजिए ! और उनकी जाति देखिए ! क्या वो ब्राह्मण थे ? क्या वो क्षत्रिय थे ?
नन्द वंश के लिए इमेज नतीजे"मौर्य, नन्द और गुप्त !
यही हैं ना प्राचीन भारत के सबसे तीन शक्तिशाली राजवंश ?
तो जब प्राचीन भारत के सबसे अधिक शक्तिशाली राजवंश तथाकथित उच्च जातियों से नहीं थे तो यह मान लिया जाना कि हजारों वर्षों से देश में नीची जाति के लोगों का शोषण हो रहा है, क्या वाकई यह बात स्वीकर करने योग्य है ?
इसी प्रकार अल्प-संख्यक शब्द भी बेहद आपत्तीजनक है ।
जिनको धर्म के नाम पर अलग देश बनाना था वो पाकिस्तान चले गए ।
हाँ ! यदि आपने भारत को हिन्दू-राष्ट्र घोषित कर दिया होता तो अल्प-संख्यक शब्द शायद मायने रखता । लेकिन जब आप धर्म-निरपेक्ष (वास्तव में पंथ निरपेक्ष क्यूंकि धर्म-रहित राष्ट्र तो हो ही नहीं सकता नहीं तो वहाँ अधर्म का शासन माना जाएगा) राष्ट्र की बात करते हैं और सबको एक बराबर मान लेते हैं तो फिर अलग से अल्प-संख्यक शब्द किसलिए ?

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