कार्तवीर्य नाम राजा बाहु सहस्रवान ....
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रही सही कसर हरियाणे के "जय दादा परसुराम "गैंग करे दे रही है|
पर यह कथा इन उपरोक्त अति मूर्खताओ के अलावा बहुत कुछ है
चन्द्र वंशीय कृतवीर्य के सुयोग्य पुत्र होने से कार्तवीर्य कहलाये गये अर्जुन जो अपने सहस्र नौकादल के कारण सहस्रभुजा धारी माने गये और "कार्तवीर्य सहस्रार्जुन " कहलाये
भारतीय सनातन मे आठ राजन्यो को मानक कहा गया है मतलब ये की उनके राज्य मे शासन व्यवस्था बिलकुल चाकचौबंद रहती थी ,प्रजा प्रसन्न और तुष्ट , कर न्युनतम, डाकू चोर का दमन और शत्रु का मर्दन ये सब गुण रहते थे
इनके शासन का पैमाना बहुत पहले दतिया के संस्कृत गुरूकुल के एक छात्र से सुना था संस्कृत श्लोक केरूप मे जिसका अर्थ था
की जहां एक पूर्णयौवना नारी रत्नाभूषणो से लदी हुई हो
वह आधीरात मे विजन वन मे से होहती हुई सुरक्षित अपने गंतव्य तक पहुंच जाये
मतलब ना तो चोर डाकू उसके धन रत्न और ना शील का हरण करें और ना वह नारी सामाजिक धार्मिक नैतिक नियमो को भंग करे तो ऐसे राजा के शासन को सुव्यवस्था का प्रमाण मानागया है
ऐसे नृप गिनाये गये हैं आठ की संख्या में
पूरे तो याद नही
वेन , पृथु ,सहस्रार्जुन ,रघु , राम ,युधिष्ठिर थे | मतलब भगवान सहस्रार्जुन का शासन चक्र इतना अमोघ था की उनके राज्य मे ना कोई चोरी होती डाका होता ना कोई किसी का धन दबाता ना नष्ट करता था
पूर्णतः शांति और व्यवस्था रहती थी , यही गुण उनके देवत्व का कारण बना | रावण सरीखे दुर्दांत राक्षस जिससे पूरे आर्यावर्त को दहला दिया उसे भगवान ने बंदी बना कर अपने कारागर मे रखा और महर्षि पुलस्त्य के अनुरोध पर मुक्त किया
भगवान कार्तवीर्य योगी पुरूष थे अतः उनको गुरू भी वैसे ही मिले अत्रिपुत्र स्मर्तगामी भगवान दत्तात्रेय | भगवान दत्तात्रेय ने ही उनको सहस्रभुजा धारी होने का वरदान दिया मतलब सहस्र नौका दल और सहस्रदल सैन्य व्यवस्था की विधी बताई
दत्तात्रेय प्रभु ने अपने अनुपम शिष्य पर कृपा की वर्षा कर दी |
उन्ही की कृपा से कार्तवीर्य चक्रवर्ती सम्राट हुये
आचार्य चरणो से सुना था की धनुर्वेद और नौकायन के आचार्यो मे भगवान कार्तवीर्य का नाम भी आता है
चूंकी भगवान कार्तवीर्य राजन्य थे वीर योद्धा और साथ ही योगेश्वर्यसपन्न थे सो उन्होने अपने गुरू दत्तात्रेय से एक वरदान और मांगा था की मेरी मृत्य साधारण नही हो कोई मुझसे वीर और तपस्वी पुरूष के हाथो ही मेरी मृत्यु हो
भगवान दत्त ने अपने प्रिय शिष्य को यह वरदान देकर सर्वस्व देदिया
अंत समय मे पूर्व निर्धारित लीलाके अनुसार भगवान कार्तवीर्य और महर्षि जमदाग्नि मे वैर हुआ ततपश्चात नारायण के अवतार परशुराम ने भगवान कार्तवीर्य सहस्रार्जुन का वध किया
अंश अपने अंशी मे समा गया
ये जजान लीजीये ध्यान से की भगवान सहस्रार्जुन भी साधारण वीर पुरूष नही थे
उनके जीवन मे ही उनको नारायण के पार्षद चक्रराज सुदर्शन का अंशावतार माना गया था
ब्रह्मवैवर्त पुराण मे अंतिम युद्ध होने से पूर्व भगवान परशुराम अपने मुख से भगवान सहस्रार्जुन की स्तुति करते हैं और भगवान सहस्रार्जुन भगवान परशुराम की स्तुति करते हैं
इस तरह भगवान के दैहिकलीला का पटाक्षेप होता है
लेकिन उनके ऐश्वर्य स्वरूप और उज्जवल होजाता है
जहां तक हमारा अनुमान है भगवान सहस्रार्जुन को भगवान दत्त ने सुदर्शनविद्या का उपदेश दिया था
और अपने जीवन काल मे ही वे अपने इष्ट से एकत्व पागये
पूर्णानुग्रह प्राप्त करे सुदर्शन चक्राधिराज का वे भगवान सहस्रार्जुन को सुदर्शन चक्रराज का अवतार माना गया है सो उनके साधन संबधी विधीयों अनेकानेक ग्रंथो मे वर्णनमिलता है
उनके साधना उपासना का मुख्य प्रभाव है की उनके उपासक का धन संपदा नष्ट नही होती ,चोरी नहीकरसकता कोई ,दबा नही सकता और जिनकी पहले ही चोरी ,नष्ट होचुकी वोउपासना से पुनः प्राप्त होती है|
भगवान कार्तवीर्य की अर्चना मे दीपदान का बहुत महत्व है , कहा गया 'कार्तवीर्यो दीपप्रिय"
सो बटुक के समान ही इनके दीपदान करने बहुत बृहद विधी है| बहुत सावधानी पूर्वक आचार्य निर्देशन मे करे जाने योग्य
इनके बहुतेरे स्तवो मे से इनके कवच का बहुत महात्म्य है | यह कवचस्तवराज में अष्टोत्तर शतनामावलि ,कवच ,दिग्बंध और स्तुति प्रकरण भरा पड़ा है| दतिया मे कभी कभी आचार्य गण यह दीपदान करवाते थे |शुरूआत मे जब उसको करते देखते तो लगता की कितना टंटाजनक काम है खोपड़ी ही काम ना करे इसमे परंतु बाद मे गुरूजनो की कृपा से उसविधी का लॉजिक समझ मे आने लगा भगवान कार्तवीर्य की राजधानी नर्मदातीरस्थ महेश्वर है जिसे पुण्यश्लोका माता अहिल्या ने अपने पावन स्पर्श से और पावन करदिया है |
वहीं घाट के काशीविश्वनाथ मंदिर के ठीक पीछे राजराजेश्वर मंदिर है जिसमे शिवलिंग स्थापित है इसे ही सुदर्शनचक्रावतार भगवान कार्तवीर्य की समाधि माना जाता है और हमको इस तथ्य पर पूर्ण श्रद्धा है इसके गर्भगृह मे तेरह नंदा दीप हैं जिनके चमत्कार और दिव्यता की बहुत किवदंतिया प्रचलित हैं| इनमे से छः में तेल दीप और सात मे घृत दीपक प्रज्वलित रहते अखंड रूप से हमको यह स्थान ओंकारेश्वर से ज्यादा प्रिय है| क्यों ना हो अपने योगेश्वर राजर्षि सम्राट और अपनी माता के सानिध्य मे कौन आनंदित ना रहता, यहां माता से दोनो समझिये माता नर्मदा और मां अहिल्या , और तीसरा कारण यह है हमारा सौभाग्य है की हमारा दूसरा मायका ठीकरी महेश्वर से बस एक घंटे पर ही है|
चलिये छोड़िये हमारे झें झें
भगवान कार्तवीर्य के पूर्णिमा के चन्द्र समान ऐश्वर्य लीला का स्मरण करिये नारायण अवतार भगवान परशुराम और सुदर्शनादिआल्लवार अवतारी भगवान कार्तवीर्य दोनो अपनी लीला करगये, वे प्रभु जगतशिक्षण हेतु पधारे ,लीला करी और संवरण कर लिया|
परंतु वर्तमान भारतीय हिन्दू मानस आज तक यह नही समझ पाया की सनातन परंपरा मे विलेन नाम की कोई चीज नही होती यहां नायक है तो सामने वाला विलेन नही प्रतिनायक है वह भी गुणवंत है| यह सारी लीला उसी अगम्य अगोचर वेदमूर्ति सत्ता की जो हर लीला से जगतशिक्षण कर रही है | अनेकानेक गुण होते हुये भी किसी एक दोष की अति से महानगुणवन्त जन का पतन होता| नैतिकता का सर्वोच्च प्रतिमान हमारी सनातन परमपरा स्थापित करती है मर्यादा पुरूषोत्तम राम के रूप मे
यहां राक्षस भी रावण सा विद्वान है पर चरित्र मे हीन होने से उसका नाश होता है और वह हेय है हर दृष्टी से
पर आधुनिक वर्ग पाश्चात्य विचार से भावित हो मूर्खता पूर्ण आचरण करता है और करता रहेगा|
यूपी बिहार से निकली यह गंदी मानस जो हरियाणे तक पहुंचगया है वो क्षत्रिय कुल के युवा परशुराम पर विषवमन करते हैं और मूर्ख ब्राह्मण युवा भगवान कार्तवीर्य पर ऐसे मूर्ख मनुष्य पशु ही है अष्टपाशो मेसे एक " जाति " नामक पाश के निकृष्टतम रूप से यह बंधे नही है यह मात्र बल्की इस मनुष्य जाति ने उसे फांसी का फंदा बना कर गले मे डाल लिया है
और माई करे पशुपति सदाशिव यूं ही इन नरपशुओ को फंदे मे रगड़ते रहे |
क्षीरसागरस्थ नारायण मे समाये परशुराम और उनके दक्षिण हस्त मे विराजमान सुदर्शनादीआल्लवार मे समाये कार्तवीर्य हम पर दयादृ होवे
जहां तक हमारा अनुमान है भगवान सहस्रार्जुन को भगवान दत्त ने सुदर्शनविद्या का उपदेश दिया था
और अपने जीवन काल मे ही वे अपने इष्ट से एकत्व पागये
पूर्णानुग्रह प्राप्त करे सुदर्शन चक्राधिराज का वे भगवान सहस्रार्जुन को सुदर्शन चक्रराज का अवतार माना गया है सो उनके साधन संबधी विधीयों अनेकानेक ग्रंथो मे वर्णनमिलता है
उनके साधना उपासना का मुख्य प्रभाव है की उनके उपासक का धन संपदा नष्ट नही होती ,चोरी नहीकरसकता कोई ,दबा नही सकता और जिनकी पहले ही चोरी ,नष्ट होचुकी वोउपासना से पुनः प्राप्त होती है|
भगवान कार्तवीर्य की अर्चना मे दीपदान का बहुत महत्व है , कहा गया 'कार्तवीर्यो दीपप्रिय"
सो बटुक के समान ही इनके दीपदान करने बहुत बृहद विधी है| बहुत सावधानी पूर्वक आचार्य निर्देशन मे करे जाने योग्य
इनके बहुतेरे स्तवो मे से इनके कवच का बहुत महात्म्य है | यह कवचस्तवराज में अष्टोत्तर शतनामावलि ,कवच ,दिग्बंध और स्तुति प्रकरण भरा पड़ा है| दतिया मे कभी कभी आचार्य गण यह दीपदान करवाते थे |शुरूआत मे जब उसको करते देखते तो लगता की कितना टंटाजनक काम है खोपड़ी ही काम ना करे इसमे परंतु बाद मे गुरूजनो की कृपा से उसविधी का लॉजिक समझ मे आने लगा भगवान कार्तवीर्य की राजधानी नर्मदातीरस्थ महेश्वर है जिसे पुण्यश्लोका माता अहिल्या ने अपने पावन स्पर्श से और पावन करदिया है |
वहीं घाट के काशीविश्वनाथ मंदिर के ठीक पीछे राजराजेश्वर मंदिर है जिसमे शिवलिंग स्थापित है इसे ही सुदर्शनचक्रावतार भगवान कार्तवीर्य की समाधि माना जाता है और हमको इस तथ्य पर पूर्ण श्रद्धा है इसके गर्भगृह मे तेरह नंदा दीप हैं जिनके चमत्कार और दिव्यता की बहुत किवदंतिया प्रचलित हैं| इनमे से छः में तेल दीप और सात मे घृत दीपक प्रज्वलित रहते अखंड रूप से हमको यह स्थान ओंकारेश्वर से ज्यादा प्रिय है| क्यों ना हो अपने योगेश्वर राजर्षि सम्राट और अपनी माता के सानिध्य मे कौन आनंदित ना रहता, यहां माता से दोनो समझिये माता नर्मदा और मां अहिल्या , और तीसरा कारण यह है हमारा सौभाग्य है की हमारा दूसरा मायका ठीकरी महेश्वर से बस एक घंटे पर ही है|
चलिये छोड़िये हमारे झें झें
भगवान कार्तवीर्य के पूर्णिमा के चन्द्र समान ऐश्वर्य लीला का स्मरण करिये नारायण अवतार भगवान परशुराम और सुदर्शनादिआल्लवार अवतारी भगवान कार्तवीर्य दोनो अपनी लीला करगये, वे प्रभु जगतशिक्षण हेतु पधारे ,लीला करी और संवरण कर लिया|
परंतु वर्तमान भारतीय हिन्दू मानस आज तक यह नही समझ पाया की सनातन परंपरा मे विलेन नाम की कोई चीज नही होती यहां नायक है तो सामने वाला विलेन नही प्रतिनायक है वह भी गुणवंत है| यह सारी लीला उसी अगम्य अगोचर वेदमूर्ति सत्ता की जो हर लीला से जगतशिक्षण कर रही है | अनेकानेक गुण होते हुये भी किसी एक दोष की अति से महानगुणवन्त जन का पतन होता| नैतिकता का सर्वोच्च प्रतिमान हमारी सनातन परमपरा स्थापित करती है मर्यादा पुरूषोत्तम राम के रूप मे
यहां राक्षस भी रावण सा विद्वान है पर चरित्र मे हीन होने से उसका नाश होता है और वह हेय है हर दृष्टी से
पर आधुनिक वर्ग पाश्चात्य विचार से भावित हो मूर्खता पूर्ण आचरण करता है और करता रहेगा|
यूपी बिहार से निकली यह गंदी मानस जो हरियाणे तक पहुंचगया है वो क्षत्रिय कुल के युवा परशुराम पर विषवमन करते हैं और मूर्ख ब्राह्मण युवा भगवान कार्तवीर्य पर ऐसे मूर्ख मनुष्य पशु ही है अष्टपाशो मेसे एक " जाति " नामक पाश के निकृष्टतम रूप से यह बंधे नही है यह मात्र बल्की इस मनुष्य जाति ने उसे फांसी का फंदा बना कर गले मे डाल लिया है
और माई करे पशुपति सदाशिव यूं ही इन नरपशुओ को फंदे मे रगड़ते रहे |
क्षीरसागरस्थ नारायण मे समाये परशुराम और उनके दक्षिण हस्त मे विराजमान सुदर्शनादीआल्लवार मे समाये कार्तवीर्य हम पर दयादृ होवे
इति शम्
कार्तिक शुक्ल सप्तमी रविवार
परिधावी संवत्स
कार्तिक शुक्ल सप्तमी रविवार
परिधावी संवत्स
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