सरकारी नौकरियाँ से दलितों का उत्थान .... ?
दलित शब्द के साथ ही एक और शब्द आ जाता है और वो है आरक्षण !
पिछड़े हुए लोगों को हमेशा के लिए पिछड़ा बना देने वाली साजिश !
मैं जानती हूँ आपको मेरी इस बात से गम्भीर आपत्ति होगी ।
इसीलिए मैं चाहती हूँ कि एक बार आप इस आरक्षण का ध्यान से विश्लेषण करें ।
एक उदाहरण से इस मुद्दे को शुरू करते हैं । मैं जब कॉलेज में पहुंची तो कॉलेज प्रवेश परीक्षा में मेरे अंक थे 606 / 900 । मेरे साथ मेरे ही क्लास में एक और लड़का था उसके प्रवेश परीक्षा में कुल अंक थे 50 / 900 ।
जबकि उसी दौर में सामान्य श्रेणी के हजारों छात्र ऐसे रहे होंगे जिन्होंने 50 से कहीं अधिक अंक लाए लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं मिला ।
मैं एकदम सहमत हूँ कि आप पर बहुत अत्याचार हुआ है । आज भी हो रहा है । सब मान लिया । यह भी मान लिया कि उसे ऐसी कोई कोचिंग की सुविधा नहीं मिली जो दूसरे बच्चों को मिली ।
लेकिन !
क्या आपको यह नहीं लगता कि यह अयोग्यता पर योग्यता का ठप्पा लगा देने जैसा है ?
क्या आपको वाकई यह लगता है कि 900 में 50 अंक लाने के लिए उसे थोड़ी सी भी मेहनत करनी पड़ी होगी ? यह तो शायद तुक्का मारने से भी आ जाए ।
क्या वाकई आपको लगता है कि ऐसे छात्र उस पढ़ाई को समझ पाएंगे ?
क्यूंकि उसका तो बेस (आधार) ही नहीं है उस पढ़ाई को समझ पाने का !
फिर ?
अच्छा ! आपको एक गलतफहमी में रखा गया है कि ऐसा करने से दलितों का उत्थान हो रहा है ।
एक अनुमान लगा कर देखिए कि देश भर में कुल कितनी सरकारी नौकरियाँ हर साल उत्पन्न होती हैं ?
और मान लीजिए कि सभी की सभी सरकारी नौकरियाँ दलितों को ही दे दी जाएँ
तो भी क्या सभी दलितों को नौकरी मिल जाएगी ?
दलितों के कितने प्रतिशत आबादी को नौकरी मिल पाएगी ?
अब आप सोचिए कि आपकी आबादी किस दर से बढ़ रही है और क्या उस दर से हर साल सरकारी नौकरी आपको मिल पाएगी ?
यदि नहीं तो इस रास्ते चल कर तो कभी भी सारे दलित ऊंचाई
पर पहुँच ही नहीं सकते !
पर पहुँच ही नहीं सकते !
फिर सबसे बड़ी बात यह है कि जिन लोगों ने एक बार इसका लाभ ले लिया वो क्या दूसरी बार इसका लाभ नहीं लेंगे ? क्या उनके बच्चे इसका लाभ नहीं लेंगे ?
तो अभी आप डर रहे थे कि जिन बच्चों को कोचिंग की सुविधा मिली आप उनको टक्कर नहीं दे सकते इसलिए आपके लिए सीट आरक्षित कर दी जाए ।
लेकिन अब क्या ?
अब आपकी ही जाति के कुछ लोग ऐसे हैं जिनको तथाकथित उच्च जाति वालों (हालांकि ये सोच कि सभी तथाकथित उच्च जाति के लोगों को सभी सुविधाएं हैं ये अपने आप में गलत है ) जैसी सुविधाएं मिल गई हैं क्या आप उनसे मुक़ाबला कर पाएंगे ?
इस प्रकार से क्या यह मान लिया जाए कि आरक्षित सीटों में से अधिकांश सीटें पहले से आरक्षण से लाभान्वित परिवारों के पास ही रहेगा और सामान्य दलित उत्थान की प्रक्रिया यहीं पर लगभग रुक सी जाएगी ?
अब इसका अर्थ क्या हुआ ?
आपने तो अपना लक्ष्य ही 50 अंकों का रखा था आपको यह लगता था कि 50 अंक ले आने मात्र से आप सफल हो जाएंगे । जबकि अब सफलता आपसे कहीं दूर जा चुकी है ।
हाल ही में एक ऐसा उदाहरण आया था जहां एक तथाकथित पिछड़ी जाति की छात्रा ने एक नामी परीक्षा में उच्च स्थान पाया । उनके माता-पिता दोनों ही अच्छे ओहदों पर थे परन्तु फिर भी उस छात्रा ने आरक्षण के लाभ को छोड़ना उचित नहीं समझा ।
साधारणतया एक तर्क दिया जाता है कि जब अपनी ही जाति के व्यक्ति को उच्च स्थान पर देखते हैं तो हममें भी आगे बढ़ने की इच्छा जागती है ।
क्या वाकई बस्तर के जंगलों में रहने वाला एक व्यक्ति दिल्ली में बैठे किसी उच्च अधिकारी का नाम भी सुनता होगा ?
और क्या वाकई वो दिल्ली में रहने वाला तथाकथित निचली / पिछड़ी जाति का उच्च अधिकारी बस्तर में रह रहे उस जंगली तथाकथित निचली जाति के व्यक्ति को अपने बराबर मानता होगा और उससे बराबरी का व्यवहार रखता होगा ?
अब यदि सीधे शब्दों में कहूँ तो आरक्षण के द्वारा पिछड़े हुए लोगों को हमेशा के लिए पिछड़ा बना कर रख देने की व्यवस्था कर दी गई । और उसके बाद उनके पिछड़ेपन का राजनीतिक इस्तेमाल कर आपने उनको वोट बैंक में परिवर्तित कर दिया ।
उनके जीवन की हर समस्या को आपने उनकी जाति से जोड़कर दिखाना शुरू कर दिया ।
क्या भ्रष्टाचार के शिकार सिर्फ तथाकथित निचली जाति के लोग हैं ?
क्या आर्थिक पिछड़ापन सिर्फ तथाकथित पिछड़ी जातियों में है ?
यदि बाजार में नकली दूध मिल रहा है तो क्या वो जाति देखकर असर करता है ?
ये दरअसल फूट डालो और शासन करो की ही नीति है उससे अधिक कुछ नहीं !
सौजन्य - ATTAR
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