◆||#चण्ड_अशोक||◆
"राजकुमार, महामात्य राधगुप्त का संदेश है, तत्काल ही पाटलिपुत्र पहुंचिए।", व्यग्रता के साथ एक गुप्तचर ने अशोक को सूचना दी। युवक ने बिना किसी औपचारिकता के जब सूचना अशोक को दी तभी अशोक को स्थिति की गम्भीरता का भान हो गया था।
मौर्य साम्राज्य के ध्वज के तले हिन्दकुश की जमीन आज यवनो के लिए यदि दीवार थी तो उसका कारण था महान चाणक्य और उसका शिष्य महान चंद्रगुप्त। अशोक जानता था गुप्तचर प्रणाली का जो तंत्र "कौटिल्य" बना गए है उसने न केवल "सिकन्दर" बल्कि "पुरु" और "धनानन्द" की भी नींव हिला दी थी। इस समय अशोक को तुरन्त ही राजधानी पहुंचना था।
अशोक को रस्ते में समाचार प्राप्त हो चुका था कि "सुषीम" को खबर नही भिजवाई गई है, यदि फिर भी उसके विश्वासपात्र खबर भिजवा भी दे तो "तक्षशिला" से पाटलिपुत्र आने में बहुत समय लगेगा। "बिन्दुसार" के प्रति अशोक में हृदय में अब कोई सम्मान बाकी नही रह गया था, इसकी वजह भी स्वयं बिंदुसार ही थे। बचपन से आज तक बिंदुसार "सुषीम" के मोह में बंधे यह नही देख पाए थे कि "अशोक" ज्यादा योग्य है। यहां तक कि "तकक्षिला" के विद्रोह के समय भी बिंदुसार,सुषीम की गलतियों को देखने से उसी प्रकार इनकार कर गए जैसे पुत्र मोह में धृतराष्ट्र।
अशोक के चेहरे पर क्रोध के भाव गहरे थे। उसके अतिरिक्त भी उसके सौ भाई थे और "अशोक" यह जानता था कि वे सभी "सुषीम" के पक्ष में है केवल उसके सहोदर "तुष्य" को छोड़कर। सुषीम ने जब पहली बार अशोक की माँ "सुभद्रांगी" को मारने का प्रयास किया तब भी "बिंदुसार" ने सुषीम को बचा लिया था। परंतु जब सुषीम ने "राज महिषी" सुभद्रांगी की हत्या कर दी तब भी बिंदुसार ने जांच को प्रभावित किया ताकि सुषीम बच सके। अपनी माता की मृत्यु से उपजे क्रोध की अग्नि में अशोक का हृदय खांडव वन की भांति जल रहा था जहां न कोई नाग जाती का कबीला शेष था न वन्य जीव।
"आह! कैसी विपदा का समय है, अपने ही पिता की मृत्यु के समय पर उनके प्रति कोई भाव नही है.?", अशोक के हृदय में चीत्कार उठी, किन्तु जब रास्ते मे जगह जगह पर उसकी गति की तीव्रता बढाने को अलग अलग जगह रथ और घोड़ो की व्यवस्था देखी तो अशोक जान गया इसी दिन के लिए आचार्य चाणक्य ने "राधागुप्त" को महामात्य बनवाया था। अशोक सोचने लगा कैसे एक चौदह वर्ष के बालक ने अपने पिता के शव को प्राप्त करने के लिए समस्त भारत वर्ष की सबसे बड़ी सेना के मध्य चुनौती स्वरूप खुद को प्रस्तुत कर दिया था।
धनानन्द की क्रूरता और उसके द्वारा जनता पर लगाये जा रहे मनमाने कर के विरुद्ध आचार्य चणक और उनका मित्र अमात्य शकटार खड़े हुए थे। परंतु धनानन्द ने क्रूरता के साथ दोनो की हत्या करवा दी और आचार्य चणक के सर को पाटलिपुत्र के मध्य एक बीचों बीच टँगवा दिया था। महा अमात्य राक्षस ने जब उस बालक का संघर्ष देख तो उसे उसके पिता का शव ले जाने की आज्ञा दी। किन्तु बालक यही नही रुका, वो तकक्षिला गया, शिक्षा ग्रहण की, आचार्य बना और जिसने सिकन्दर के भारत आने से पहले ही उसके यहां आने की घोषणा कर दी। उसी आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त के माध्यम से स्वतंत्र सेना गांधार राज आम्भी के राज्य में खड़ी कर दी बिना किसी भनक के, उसी आचार्य ने सिकन्दर के हृदय में भारत के ज्ञान के लिए पहली चोट की, उसी ने सिकन्दर के अभिमान को तोड़ने के लिए पुरु को सूचनाएं दी औऱ उसी आचार्य ने धनानंद को मृत्यु के घाट उतरवा कर चंद्रगुप्त को सम्राट बनवाया औऱ पिता की हत्या का प्रतिशोध लिया।
आशोक अब बिंदुसार के कक्ष में था, राधागुप्त ने बिंदुसार को मनाने का प्रयास किया, किन्तु बिंदुसार सुषीम पर अड़े रहे। अंततः अशोक ने स्वयं महाराज का मुकुट ग्रहण किया और राधागुप्त ने मुनादी करवा दी कि अशोक राजप्रतिनिधि बना दिये गए है । बिंदुसार ने कांपते होंठो से अशोक को पूछा ,"क्यों?" क्रूर अशोक की आंखों में आँसू थे,"पिताश्री, माँ ईश्वर होती है। यदि पिता मकान की छत है तो माँ उस मकान की नींव है। आपने मेरी माँ को नही मेरी भावनाओ को मारने वाले को आश्रय दिया है, परिणाम तो अब मिलेंगे।"
इसके बाद अशोक ने सुषीम को घेर कर मारा, अपने एक एक भाई की क्रूरता से हत्या कर दी। अशोक यही नही रुका, मगध के सामने जो भी खड़ा हुआ रौंद दिया गया। उसकी आक्रामक क्षमता ने उसके सम्राट बनने के 7 वर्ष के मध्य ही पूरे भारत वर्ष पर अपना अधिकार कर लिया। उसकी क्रूरता ने उसे "चण्ड अशोक" का नाम दिलवाया।
माँ की ममता यदि न हो तो व्यक्ति चण्ड ही बन जाता है, जिस प्रकार पृथ्वी अपने केंद्र में शून्य होती है इसी प्रकार पुत्र माँ की गोद मे भार रहित होता है।
समस्त दिवस माँ को समर्पित फिर भी इस मातृ दिवस की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
संदर्भ:- "साक्षी है समय" ले°- "राजीव रंजन प्रसाद"
#लोकेश कौशिक
Comments
Post a Comment