◆||#सुर_संगीत||◆
"अकबर" के दरबार मे कला प्रेमियों का जमावड़ा रहता था, 9 रत्नों में एक थे तानसेन। "तानसेन" "गुरु हरिदास" के शिष्य थे, वही "गुरु हरिदास" जिन्होंने अपनी सुरों की साधना से बिहारी जी को पुनः प्रकट कर दिया था और उन्हें विवश किया वृंदावन के निधिवन में रहने को।
"अकबर" एक दिन "तानसेन" का संगीत सुनकर इतने मंत्रमुग्ध हुए की उन्होंने आगरा में यह घोषणा करवग दी की "तानसेन" के अतिरिक्त कोई भी गाना नही गायेगा, अन्यथा उसे "तानसेन" के लिए चुनौती समझा जाएगा और यदि उसने "तानसेन" को नही हराया तो उसे मृत्यु दंड दे दिया जाएगा।
एक दिन साधुओं की एक टोली सुबह सुबह भजन गाती बांके बिहारी के दर्शनों के लिए जा रही थी। आगरा के निकट से जब वे लोग गुजरे तो सिपाहियों ने उन साधुओं को पकड़ लिया और कहा,"क्या, तुम्हें मृत्यु का भय नही है, जो गाना गा रहे हो.? चलो अब बादशाह के दरबार में।" साधु घबराए मगर क्या करें जाना तो था ही सो चल पड़े दरबार की ओर।
अकबर ने पूछा, "इनको दरबार मे क्यों लाया गया ?" सिपाहियों ने कारण बताया तो अकबर के आदेश पर "तानसेन" बुलाये गए। साधुओं को गाने को कहा गया, मगर वे तो हरि धुन गाते थे, जैसा तैसा गाया और फिर तानसेन ने गाकर उन्हें हरा दिया। अकबर ने कहा कि इन सबको मृत्यु दंड दे दिया जाए , मगर तानसेन ने कहा कि साधुओं को मृत्युदंड नही देना चाहिए, तो अकबर ने उन्हें अपने राज्य की सीमा से बाहर जाने का आदेश सुनाया।
इस घटना के कई वर्ष बाद एक दिन नगर के एक मंदिर से किसी की गाने की आवाज सुनाई पड़ी। सब लोग मंत्रमुग्ध से उधर गए तो पाया एक बड़े बड़े बालों वाला भगवा वस्त्रधारी नवयुवक आंखे बंद करके गा रहा है। तब तक बादशाह अकबर के सिपाही भी उधर आ चुके थे उन्होंने उस युवक को पकड़ कर दरबार मे पेश होने को कहा।
उस युवक के पीछे नगर की भीड़ भी तमाशा देखने दरबार की तरफ चल पड़ी, पूरे नगर में कोलाहल हो गया कौन तानसेन को चुनौती देने आया है.? जब सब लोग दरबार पहुंचे तो अकबर के आदेश पर तानसेन और नवयुवक आमने सामने आ बैठे, दोनो को तानपूरा दिया गया।
दोनो ने एक से बढ़कर एक राग सुनाए, कोई किसी से कम नजर नही आता था, तभी तानसेन ने दीपक राग गाया और अग्नि उतपन्न की। यह देखकर युवक ने राग मल्हार गाया जिससे बारिश हुई और अग्नि बुझ गई। तानसेन ने "टोडी राग" गाया और हिरणों का एक झुंड दरबार मे हाजिर हो गया, तानसेन ने उन्हें फूलों की माला पहनाई और हिरण दौड़ गए। अब युवक ने "मृग रजनी टोडी" गाया और हिरण पुनः दरबार मे हाजिर हो गए, युवक ने उनके गले से माला निकालकर तानसेन को दे दी। अबकी बार युवक ने "मालकोंश" गाया जिससे पत्थर पिघल गया उस पत्थर में उस युवक ने मंजीरे रख दी, जैसे ही राग बन्द हुआ, पत्थर फिर से ठोस हो गया। युवक ने तानसेन से उस मंजीर को निकालने को कहा, मगर तानसेन यह नही कर पाए।
तानसेन की हार के पश्चात अकबर उन्हें मृत्यु दंड देने लगे तो उस युवक ने कहा,"रुकिए महाराज, मैं आपसे कुछ मांगता हूं!" अकबर ने स्वीकृति दी तो उस युवक ने कहा,"महाराज तानसेन को छोड़ दिया जाए और आज से यह शर्त भी तोड़ दी जाए कि तानसेन से अच्छा न गाने पर मृत्युदंड मिलेगा। कुछ साल पहले जब मैं एक बच्चा था तो साधुओं के एक टोले के साथ यहां से गुजर रहा था, आप लोगो ने हमे जबरदस्ती पकड़ लिया और अपमानित किया। उसी समय मैं गुरु हरिदास के पास पहुंचा और उनसे संगीत की शिक्षा प्राप्त की, मेरा नाम बैजनाथ मिश्र है।" अकबर ने युवक की बात मान ली।
सभी लोगो ने बैजनाथ मिश्र को प्रणाम किया, यही बैजनाथ बैजू बावरा के नाम से प्रसिद्ध हुए, ये ग्वालियर के राजा मानसिंह के दरबार के गायक थे।
साभार
#लोकेश कौशिक जी
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने ...शुक्रिया
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