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Showing posts from October, 2019

भगवान शिव का दूसरा घर....उनाकोटि त्रिपुरा

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त्रिपुरा, नार्थ ईस्ट भारत का एक राज्य...! त्रिपुरा की राजधानी से 177 किमी दूर उनाकोटी का जंगल जो कहलाता हैभगवान शिव का दूसरा घर... टेढ़ी मेढ़ी खूबसूरत पगडंडियां, सुंदर-घने जंगल, घाटियां, संकरी कल-कल बहती नदियां और झरने... उनाकोटी एक औसत ऊंचाई वाली पहाड़ी श्रृंखला है जहाँ आठवीं नवीं सदी की हिन्दू देवी-देवताओं की चट्टानों पर अनगिनत मूर्तियां उकेरी गई हैं, जो अब भी मौजूद हैं... उनाकोटि का अर्थ है एक करोड़ से एक कम... एक दंत कथा के अनुसार यहाँ शिव की एक करोड़ में एक मूर्ति कम है, इस कारण इसका नाम ‘उनाकोटी’ पड़ा.. उनाकोटि उनाकोटि उनाकोटि त्रिपुरा उनाकोटि त्रिपुरा उनाकोटि त्रिपुरा उनाकोटि त्रिपुरा उनाकोटि त्रिपुरा उनाकोटि त्रिपुरा उनाकोटि त्रिपुरा उनाकोटि त्रिपुरा उनाकोटि त्रिपुरा उनाकोटि त्रिपुरा . यहाँ 30 फुट ऊंचे शिव की विशालतम छवि एक खड़ी चट्टान पर उकेरी गई है, जिसे ‘उनाकोटिस्वर काल भैरव’ कहा जाता है... इसके सिर को 10 फीट तक के लंबे बालों के रूप में उकेरा गया है... इसी मूर्ति के पास शेर पर सवार माता दुर्गा का शिल्प चट्टान पर उकेरा गया है वहीं दूसरी तरफ मकर पर सवार देवी गंगा का शिल्प भी है... ...

नाम और परम्परा सँजोए रखने का माहात्म्य ...अयोध्या, प्रयागराज, ज्ञानवापी

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. 435 वर्ष से हिन्दू जनमानस ने अयोध्या, प्रयागराज, ज्ञानवापी आदि नाम याद रखा ... कभी लेखों में, कविताओं में, श्लोकों में, परम्पराओं में ... जो कहे कि परम्परा, मान्यताएँ और वर्षों पुरानी चीज़ याद रखने में क्या फायदा .. जो आपकी मान्यताओं पर चोट करे उसके मुंह पर फेंक के मार दीजिए ...अनेकों उदाहरण मिल जाएँगे ... . इस गद्य ने अयोध्या धाम को फैज़ाबाद में बचा के रखा काशीनाथ गँगा बड़ी न गोदावरी, न तीर्थराज प्रयाग .. सबसे बड़ी अयोध्या नगरी, जहाँ राम लिए अवतार ... . पुराण के इस श्लोक ने प्रयागराज के कुम्भ परंपरा को न भूलने दिया . प्रयागे माघमासे तु त्र्यहं स्नानस्य यत्फलम्। ... नाश्वमेधसस्त्रेण तत्फलं लभते भुवि।। . काशी में औरंगज़ेब द्वारा महादेव का मंदिर तोड़ने के बाद भी ज्ञान वापी नाम को रखा हुआ है ... मस्जिद को ज्ञानवापी बुलाते हैं जिससे पता रहे कि मंदिर को तोड़ कर ही ये बना है ... ज्ञानवापी को जाने लें| . एक पोस्ट पर किसी मित्र ने कमेण्ट किया कि ... ज्ञानवापी तो मस्जिद का नाम है ... ये कमेंट मेरे लिए कोई अचंभित करने वाली बात नहीं है .. दरअसल लोगों के त्वरित के प्रकटीकरण की बात है .. सोच ही कभी नहीं...

शाह दुले साहब के चूहे - मंटो

# शाह_दुले_साहब_के_चूहे सलीमा की जब शादी हुई तो वो इक्कीस बरस की थी। पाँच बरस होगए मगर उसके औलाद न हुई। उसकी माँ और सास को बहुत फ़िक्र थी। माँ को ज़्यादा थी कि कहीं उसका नजीब दूसरी शादी न करले। चुनांचे कई डाक्टरों से मश्वरा किया गया मगर कोई बात पैदा न हुई। सलीमा बहुत मुतफ़क्किर थी। शादी के बाद बहुत कम लड़कियां ऐसी होती हैं जो औलाद की ख़्वाहिशमंद न हो। उसने अपनी माँ से कई बार मश्वरा किया। माँ की हिदायतों पर भी अमल किया। मगर नतीजा सिफ़र था। एक दिन उसकी एक सहेली जो बांझ क़रार दे दी गई थी, उसके पास आई। सलीमा को बड़ी हैरत हुई कि उसकी गोद में एक गुल गोथना लड़का था। सलीमा ने उससे बड़े बेंडे अंदाज़ में पूछा, “फ़ातिमा तुम्हारे ये लड़का कैसे पैदा होगया।” फ़ातिमा उससे पाँच साल बड़ी थी। उस ने मुस्कुरा कर कहा, "ये शाह दूले साहब की बरकत है। मुझ से एक औरत ने कहा कि अगर तुम औलाद चाहती हो तो गुजरात जाकर शाह दूले साहब के मज़ार पर मन्नत मानो। कहो कि हुज़ूर मेरे जो पहले बच्चा होगा वो आप की ख़ानक़ाह पर चढ़ा दूंगी।" उसने ये भी सलीमा को बताया कि जब शाह दूले साहब के मज़ार पर ऐसी मन्नत मानी जाये तो पहला बच्चा ऐसा होता है...

डोले शाह के चूहे या अभिशप्त

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# डोले_शाह_के_चूहे  - पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गुजरात या गुजरावाला जिले में पीर डोले शाह की मज़ार है। डोले शाह औरंज़ेब के ज़माने में यहाँ रहा करते थे। पीर साहब का दावा था कि वो बाँझ औरतों को औलाद दे सकते हैं परन्तु उनकी शर्त ये थी कि औरतें अपना पहला बच्चा उनकी दरगाह पर पीर की सेवा के लिए छोड़ जाएंगी। ये परंपरा आज तक चली आ रही है और एक अनुमान के मुताबिक़ पिछले तीन सौ साल में एक लाख से ज़्यादा बच्चे दरगाह की नज़र किये गए। ये बच्चे जो दरगाह पर पल कर बड़े होते थे, इनकी खासियत ये थी की ये अपनी उम्र के हिसाब से शारीरिक तौर पर तो लम्बे-चौड़े, हष्ट-पुष्ट हो जाते थे, परन्तु इनका सर एक-दो साल के बच्चे जितना बड़ा ही रहता था। साथ में ये मंदबुद्धि भी होते थे और दरगाह इनसे भीख मंगवा कर अपनी कमाई करती थी। इसका कारण यह था की यहाँ छोड़े गए साल-दो-साल के मासूम बच्चों को इसी उम्र से सर पर एक लोहे का हेलमेट पहना कर कस दिया जाता था। ये लोहे की टोपी सालों तक बंधी रहती थी। इससे इन बच्चों के सर के बनावट उतनी ही रह जाती थी और साथ में इनका मानसिक विकास भी रुक जाता था। इनको "चूहों" का नाम दिया जाता था और इन्ह...