अदालत का झंझट - लघुकथा - Hindi Short Story
#अदालत की झंझट से बचने का एक अनुभव आपसे 'शेयर' करना चाहता हूँ....
अब से 19 वर्ष पूर्व हमारी होटल से जुड़ी एक दूकान 2500/- प्रति माह के हिसाब से किराये पर मेरे पिता जी ने उठाई थी. लिखित शर्त थी कि हर तीन वर्ष में 10% किराया बढ़ाया जाएगा. 15 वर्ष में यह किराया बढ़ते-बढ़ते 3660/- मासिक हो गया, मैंने किराएदार से किराया 'रिव्यू' करने का अनुरोध किया क्योंकि उस दूकान का तात्कालीन प्रचलित किराया 30 से 35 हजार रुपए प्रति माह हो चुका था, लगभग दस गुना अधिक.किराएदार ने उचित तर्क दिया कि अनुबंध के हिसाब से हर तीन वर्ष में किराया बढ़ाया जा रहा है, वही मिलेगा। इस प्रकार उन्होंने 'रिव्यू' करने से इंकार कर दिया। मैंने उनसे दूकान खाली करने का अनुरोध किया, उन्होंने दूकान खाली करने से भी इंकार कर दिया और मुझसे कहा- 'जैसा बन सके, करवा लो।'
दूकान खाली करवाने के जो आजकल तरीके चल रहे हैं, वे मेरे स्वभाव के अनुरूप नहीं थे लेकिन एक तरीका सज्जनता वाला बचा था, अदालत में दूकान खाली करने के लिए मुकदमा दायर करना. मैंने अपने वकील मित्र शर्मा से चर्चा की तो उन्होंने कहा- 'दूकान खाली हो जाएगी लेकिन समय बहुत लगेगा, लोवर कोर्ट, फिर हाई कोर्ट, फिर सुप्रीम कोर्ट....कितना चक्कर काटेंगे ?'
'फिर ?'
'देखो न, बातचीत से काम बनता हो'
'उन्होंने तो साफ इंकार कर दिया'
'तो फिर मुकदमा दायर कर दीजिए लेकिन कचहरी आपके जैसे आदमी के लायक जगह नहीं है, मैं आपको वहाँ नहीं देखना चाहता. आप और विचार कर लीजिए'
'ठीक है' मैंने कहा और वापस आ गया.उसके बाद मुझे विचार आया कि किराएदार के ऊपर मनोवज्ञानिक दबाव बनाया जाए. मैंने उनसे किराया लेना बंद कर दिया.
'फिर ?'
'देखो न, बातचीत से काम बनता हो'
'उन्होंने तो साफ इंकार कर दिया'
'तो फिर मुकदमा दायर कर दीजिए लेकिन कचहरी आपके जैसे आदमी के लायक जगह नहीं है, मैं आपको वहाँ नहीं देखना चाहता. आप और विचार कर लीजिए'
'ठीक है' मैंने कहा और वापस आ गया.उसके बाद मुझे विचार आया कि किराएदार के ऊपर मनोवज्ञानिक दबाव बनाया जाए. मैंने उनसे किराया लेना बंद कर दिया.
बिना किराए लिए दो साल बीत गए,एक शाम वे मेरे पास आए और बोले- 'दुवारका भैया, ये क्या कर रहे हो ? किराया क्यों नहीं लेते हो ?'
'किराया इतना कम है कि लेने का दिल नहीं करता, घर की बात है, आपका व्यापार चल रहा है, मुझे खुशी है' मैंने कहा.
'ऐसा थोड़े होता है'
'तो आप किराया बढ़ाने पर विचार करें, रुपए की कीमत घट गई है, प्रापर्टी की कीमत बढ़ गई है, मैं कैसा करूँ ?'
'इतवार को बैठक कर लेते हैं' उन्होंने कहा.
'किराया इतना कम है कि लेने का दिल नहीं करता, घर की बात है, आपका व्यापार चल रहा है, मुझे खुशी है' मैंने कहा.
'ऐसा थोड़े होता है'
'तो आप किराया बढ़ाने पर विचार करें, रुपए की कीमत घट गई है, प्रापर्टी की कीमत बढ़ गई है, मैं कैसा करूँ ?'
'इतवार को बैठक कर लेते हैं' उन्होंने कहा.
नियत दिन बैठक हुई, विचार-विमर्श हुआ और वे दस हजार रुपए प्रति माह किराया देने के लिए सहमत हो गए.प्रति वर्ष 10% किराया बढ़ाने और 'एरियर्स' किराया नई निर्धारित दर पर देने के लिए भी सहमत हो गए.
मैं भी खुश, वे भी खुश.हम लोग अदालत के चक्कर काटने से बच गए और हमारा प्रेम-व्यवहार कायम है.
बताइये, यह प्रयोग आपको कैसा लगा ?
#द्वरिका प्रसाद
वाह...
ReplyDeleteइसे कहते हैं गांधीवादी तरीका
सादर
धन्यवाद्
Deleteलाजावब.. सब्र से काम लिया तो काम बन गया ..नहीं कोर्ट कचहरी लगाते रहो चक्कर पे चक्कर ..
ReplyDeleteआपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
धन्यवाद कविता जी
Deleteshandaar
ReplyDeleteplease read my blog
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