महर्षि पाणिनि

महर्षि पाणिनि - महर्षि पाणिनी महर्षि पाणिनि के प्राचीन प्रोग्रामिंग बारे में बताने पूर्व में आज की कंप्यूटर प्रोग्रामिंग किस प्रकार कार्य करती है इसके बारे में कुछ बताना चाहूँगी  आज की कंप्यूटर प्रोग्रामिंग भाषाएँ जैसे सी, सी ++, जावा आदि में प्रोग्रामिंग हाई लेवल लैंग्वेज (उच्च स्तर की भाषा) में लिखे जाते है जो अंग्रेजी के सामान ही होती है | इसे कंप्यूटर की गणना सम्बन्धी व्याख्या (संगणना के सिद्धांत) जिसमे प्रोग्रामिंग के सिंटेक्स आदि का वर्णन होता है, के द्वारा लो लेवल लैंग्वेज (कम स्तर की भाषा) जो विशेष प्रकार का कोड होता है जिसे न्यूमोनिक कहा जाता है जैसे जोड़ के लिए ADD, गुना के लिए एमयूएल आदि में परिवर्तित किये जाते है | तथा इस प्रकार प्राप्त कोड को प्रोसेसर द्वारा द्विआधारी भाषा (बाइनरी भाषा: 0101) में परिवर्तित कर क्रियान्वित किया जाता है |
संगणना पर की इस प्रकार पूरा कंप्यूटर जगत थ्योरी निर्भर करता है | इसी संगणना पर महर्षि पाणिनि (लगभग 500 ई पू) ने एक पूरा ग्रन्थ लिखा था महर्षि पाणिनि संस्कृत भाषा के सबसे बड़े व्याकरण विज्ञानी थे | इनका जन्म उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। कई इतिहासकार इन्हें महर्षि पिंगल का बड़ा भाई मानते है | इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है।
अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। इनके द्वारा भाषा के सन्दर्भ में किये गये महत्त्व पूर्ण कार्य 19 वी सदी में प्रकाश में आने लगे |
19 वी सदी में यूरोप के एक भाषा विज्ञानी फ्रांज Bopp (14 सितम्बर 1791-23 अक्टूबर 1867) ने श्री पाणिनि के कार्यो पर गौर फ़रमाया। उन्हें पाणिनि के लिखे हुए ग्रंथों में तथा संस्कृत व्याकरण में आधुनिक भाषा प्रणाली को और परिपक्व करने के नए मार्ग मिले | इसके बाद कई संस्कृत के विदेशी चहेतों ने उनके कार्यो में रूचि दिखाई और गहन अध्ययन किया जैसे: Ferdinand डी सौसर (1857-1913), लियोनार्ड ब्लूमफील्ड (1887 - 1949) तथा एक हाल ही के भाषा विज्ञानी Frits Staal (1930-2012)। तथा इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए 19 वी  सदी के एक जर्मन विज्ञानी फ्रेडरिक लुडविग Gottlob Frege (8 नवम्बर 1848-26 जुलाई 1925) ने इस क्षेत्र में कई कार्य किये और इन्हें आधुनिक जगत का प्रथम लॉजिक विज्ञानी कहा जाने लगा | जबकि इनके जन्म से लगभग 2400 वर्ष पूर्व ही श्री पाणिनि इन सब पर एक पूरा ग्रन्थ लिख चुके थे अपनी ग्रामर की रचना के दौरान पाणिनि ने सहायक चिह्न (सहायक प्रतीक) प्रयोग में लिए जिसकी सहायता से कई प्रत्ययों का निर्माण किया और फलस्वरूप ये ग्रामर को और सुद्रढ़ बनाने में सहायक हुए |
इसी तकनीक का प्रयोग आधुनिक विज्ञानी एमिल पोस्ट (फरवरी 11, 1897 - अप्रैल 21, 1954) ने किया और आज की समस्त कंप्यूटर प्रोग्रामिंग भाषाओं की नीव रखी | आयोवा स्टेट यूनिवर्सिटी, अमेरिका ने पाणिनि के नाम पर एक प्रोग्रामिंग भाषा का निर्माण भी किया है जिसका नाम ही पाणिनि प्रोग्रामिंग लैंग्वेज रखा है। एक शताब्दी से भी पहले प्रिसद्ध जर्मन भारतिवद मैक्स मूलर (1823-19 00) ने अपने साइंस आफ थाट में कहा - "मैं निर्भीकतापूर्वक कह ​​सकता हूँ कि अंग्रेज़ी या लैटिन या ग्रीक में ऐसी संकल्पनाएँ नगण्य हैं जिन्हें संस्कृत धातुओं से व्युत्पन्न शब्दों से अभिव्यक्त न किया जा सके इसके विपरीत मेरा विश्वास है कि 2। 50,000 शब्द सम्मिलित माने जाने वाले अंग्रेज़ी शब्दकोश की सम्पूर्ण सम्पदा के स्पष्टीकरण हेतु वांछित धातुओं की संख्या, उचित सीमाओं में न्यूनीकृत पाणिनीय धातुओं से भी कम है।

अंग्रेज़ी में ऐसा कोई वाक्य नहीं जिसके प्रत्येक शब्द का 800 धातुओं से एवं प्रत्येक विचार का पाणिनि द्वारा
प्रदत्त सामग्री के सावधानीपूर्वक वेश्लेषण के बाद अविशष्ट 121 मौलिक संकल्पनाओं से सम्बन्ध निकाला न जा सके। " अप्रैल 1993 में MLBD समाचार पत्र (indological ग्रंथ सूची की एक मासिक), hardwear घोषित किया है बिना में महर्षि पाणिनि को पहले softwear आदमी। जिसमे बताया गया "जिसका मुख्य शीर्षक था" भविष्य हार्डवेयर के लिए संस्कृत सॉफ्टवेयर "प्राकृतिक भाषाओं (प्राकृतिक भाषा केवल संस्कृत ही है बाकि सब की सब मानव रचित है) को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए अनुकूल बनाने के तीन दशक की कोशिश करने के बाद, वैज्ञानिकों को एहसास हुआ कि कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में भी हम 2600 साल पहले ही पराजित हो चुके है। हालाँकि उस समय इस तथ्य किस प्रकार और कहाँ उपयोग करते थे यह तो नहीं कह सकते, पर आज भी दुनिया भर में कंप्यूटर वैज्ञानिक मानते है कि आधुनिक समय में संस्कृत व्याकरण सभी कंप्यूटर की समस्याओं को हल करने में सक्षम है। व्याकरण के इस महनीय ग्रन्थ मे पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के 4000 सूत्र बहुत ही वैज्ञानिक और तर्कसिद्ध ढंग से संगृहीत हैं। नासा के वैज्ञानिक Mr.Rick ब्रिग्स ने अमेरिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) और पाणिनी व्याकरण के बीच की शृंखला खोज की। प्राकृतिक भाषाओं को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए अनुकूल बनाना बहुत मुस्किल कार्य था जब तक कि Mr.Rick ब्रिग्स। द्वारा संस्कृत के उपयोग की खोज न गयी।उसके बाद एक प्रोजेक्ट पर कई देशों के साथ करोड़ों डॉलर खर्च किये गये।

महर्षि पाणिनि शिव जी बड़े भक्त थे और उनकी कृपा से उन्हें महेश्वर सूत्र से ज्ञात हुआ जब शिव जी संध्या तांडव के समय उनके डमरू से निकली हुई ध्वनि से उन्होंने संस्कृत में वर्तिका नियम की रचना की थी
तथा इन्होने महादेव की कई स्तुतियों की भी रचना की। नृत्तावसाने नटराजराजो ननाद ढक्कां नवपञ्चवारम्। उद्धर्त्तुकामो सनकादिसिद्धानेतद्विमर्शे शिवसूत्रजालम्। -माहेश्वर सूत्र पाणिनीय व्याकरण की महत्ता पर विद्वानों के विचार: "पाणिनीय व्याकरण मानवीय मष्तिष्क की सबसे बड़ी रचनाओं में से एक है" (लेनिन ग्राड के प्रोफेसर टी शेरवात्सकी।)। "पाणिनीय व्याकरण की शैली अतिशय-प्रतिभापूर्ण है और इसके नियम अत्यन्त सतर्कता से बनाये गये हैं" (कोल ब्रुक)। "संसार के व्याकरणों में पाणिनीय व्याकरण सर्वशिरोमणि है ... यह मानवीय मष्तिष्क का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अविष्कार है" (सर डब्ल्यू। डब्ल्यू। हण्डर)। "पाणिनीय व्याकरण उस मानव-मष्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम नमूना है जिसे किसी दूसरे देश ने आज तक सामने नहीं रखा"। (प्रो। मोनियर विलियम्स) ये है भारतीय सनातन संस्कृति की महानता एवं वैज्ञानिकता ....... प्रसारण करना ना भूलें यथासंभव शेयर का विनम्र आग्रह।

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