जब किस्मत में लिखे हैं घोड़े तो कहाँ से मिलेंगे पकौड़े ...
वैसे तो अपुन की जिंदगी सात साल पहले तक बड़ी बिंदास टाइप रही ... एकदम झकास मस्तमौला कटपीस भी अपुन को जीवन भर मिलते रहे ... हँसते रहे हंसाते रहे ... एकदम खानाबदोशी जीवन ... जहाँ मिल गई दो वहीँ गिर के गए सो ... कुछ एहि टाइप ...
बचपन से किशोर अवस्था तक बस मस्ती भरा जीवन ...
बात उन दिनों की जब इण्टर के एग्जाम थे ... तेज गर्मी ... टपकती गंधयुक्त पसीने और थपेड़ों वाली लू वाली गर्मी में रसायन विज्ञान का दूसरा पेपर ...
माता राम ने बढ़िया तेज काजल लगे विकास बाबू को दही पेड़े खिला टीका करके पेपर तोड़ने भेज दिया ... सेंटर पर पहुंचे ... सीट तलाशी विराज भी गए ...
कुछ ही देर मैं एक लंब तड़ंग मोटा भारी भरकम पर्वताकार भीमकाय काया आगे वाली सीट पर बैठ गई ... मुंह में ठूसम ठूस गुटखा ... साथ में दो बन्दूक लिए पहलवान जो भाईजान को छोड़ने आये थे ... बगल में बन्दूक भी टांगे थे ... दरअसल आगे की बात के पहले बता दूँ हमारे शहर के सबसे अमीर व्यापारी के सपूत थे ... सो मास्साब लोग भी उस भीमकाया की जी हुजूरी में थे ... खैर
पेपर बंटा ... शांति से मैं अपना पेपर हल करने लगा ...
आगे वाले भैया अपने दोनों जेबों में नकल सामग्री भरे थे ... सो हर प्रश्न का उत्तर छांटते और फाड़ते ... सामग्री पुन: जेब के अंदर चली जाती ... कभी कभार मैं एक नजर उन पर मारता और फिर हल करने में लग जाता ...
ढाई घंटे में मैंने पेपर हल किया ... पर एक प्रश्न जेल्डाल विधि जो अपुन को न आती थी ... इस जुगाड़ में कि भैया जी कुछ मदद करें ... पर डर के मारे फ़िलहाल हिम्मत न हुई ...
समय बीता ... पेट में गुदगुदी शुरू ... समय और बीता ... पेट में गुड़गुड़ी भी शुरू ... और बीता तो सोचा ट्राई करने में क्या जाता? पूछते हैं ...
मैंने पीछे से पीठ में ऊँगली गपाई ... ज्यूँ ही ऊँगली हुई नहीं ... कातिलाना अंदाज दिखाते फ़ुटबाल भर चेहरा मेरी ओर घूमा ... बोला ... का है वे ??
गुटखा खाना का वे ?? मैं डर सहम कर दबी आवाज में ... भाई जी ... प्रश्न सात का ब मुझे नहीं आया ... आपको आया हो तो प्लीज बता सकते ...
बोला चुप बैठ ... गुटखा खाना तो खा ... डिस्टर्ब न कर ... फिर क्या चुप बैठ गया ...
समय और बीता ... अब तो पेट में कीड़े भी काटने लगे ... ऐसा होता भी है ... समय कम हो और काम ज्यादा ... तो जो भड़भड़ाहट होती ... उसकी कल्पना जरा कीजियेगा ...
पेपर ख़त्म होने में 15 मिनट शेष ... चैन न पड़ा ... फिर ऊँगली ... फिर वही अदा ... तीखा अंदाज ... भाई जी ... दिखा दीजिये ... न प्लीज
अबे घोड़े हो का ... दस बार कहूँ क्या एक बात ... मैं चुप ... शांत ... चेहरा लटकाये बैठ गया ... अनायास उसका मूड बदला ... उसने अपनी डेस्क पर कॉपी खोली ... बोला जल्दी कर ... जैसे भगवान साक्षात मिल गए ... हल्के से उठा ... कॉपी पर नजर ... मेरे परखच्चे उड़ गए ... पेज पर लिखा था ... राहुल पाकेट बुक्स इंटरमीडिएट रसायन विज्ञान द्वितीय प्रश्नपत्र मेरठ ... इसके बाद जेल्डाल विधि ... की हेडिंग पड़ी थी ... ठूंठ सा एक बारगी खड़ा रह गया ... फिर कहा भैया ये क्यों लिख दिए ?? बोला देख ज्यादा वकील न बन ... करना तो कर नहीं ये कॉपी बन्द। ..
मेरी बत्ती फ्यूज ... जो मौका मिला वो भी गया हाँथ से ... खैर मिन्नतें शुरू ... दुबारा माना ... अब पांच मिनट शेष ... मैं उसकी उन बातों को छोड़ उत्तर लिखता गया ... पेज के अंत में फिर एक अमरवाक्य ... क्र.प.उ।
सोचा कहूँ लेकिन अबकी हिम्मत न हुई ... और घंटी बजने तक मैंने उस प्रश्न को कर लिया ... घंटी बजी ... कॉपी जमा ...
लेकिन घण्टी के बाद भी सम्बंधित विषय के मास्साब को उसके एक स्थानीय परिचित मास्साब ले आये ... वो इसलिये कि उसकी कॉपी जमा होने से पहले कॉपी को एक बार वो चेक कर लें ... और कमियों का सुधार भी हो जाये ... और छोटे प्रश्न हल भी हो जाएँ ... मास्साब ने जैसे ही कॉपी देखी ... मास्साब अपना सर पकड़ गए ... बोले नकल करने की भी तुझे अक्ल नहीं ... गधा कहीं का ... काट इसे ... बड़ा आया राहुल पाकेट बुक्स इंटरमीडिएट मेरठ वाला ...
चार झापड़ कान के नीचे रसीद कर दिए ... चूँकि उसके परिचित थे ... तो बेचारा मूक होकर झापड़ खा सही कर कॉपी जमा किया ... मैं ये सारा दृश्य गैलरी में खड़ा देख रहा था ... वो ज्यूँ ही गुजरा। ..मैंने कहा ... भैया जी ... कहा था न मैंने कि ये सब आप क्या लिखे ?? और आप ....
इतना सुन आग बबूला ... बोला भाग जा नहीं इत्ते मारूँगा ... कि गिन न पायेगा ... बड़ो आओ वकील को लऊँ डा ... तू ही तो सारे फसाद की जड़ ... चल भाग ...
मैं पुंछ दबाया ... और भाग लिया ...
चलिए अब देखिये आज वही मुटल्ला लड़का सेठ बन गया ... फार्च्यूनर से चलता ... और एक हम खड़िया घिस रहे ...
इसी को कहते जब किस्मत में लिखे हैं घोड़े तो कहाँ से मिलेंगे पकौड़े ...
#विकास उदैनिया की दीवार से
बचपन से किशोर अवस्था तक बस मस्ती भरा जीवन ...
बात उन दिनों की जब इण्टर के एग्जाम थे ... तेज गर्मी ... टपकती गंधयुक्त पसीने और थपेड़ों वाली लू वाली गर्मी में रसायन विज्ञान का दूसरा पेपर ...
माता राम ने बढ़िया तेज काजल लगे विकास बाबू को दही पेड़े खिला टीका करके पेपर तोड़ने भेज दिया ... सेंटर पर पहुंचे ... सीट तलाशी विराज भी गए ...
कुछ ही देर मैं एक लंब तड़ंग मोटा भारी भरकम पर्वताकार भीमकाय काया आगे वाली सीट पर बैठ गई ... मुंह में ठूसम ठूस गुटखा ... साथ में दो बन्दूक लिए पहलवान जो भाईजान को छोड़ने आये थे ... बगल में बन्दूक भी टांगे थे ... दरअसल आगे की बात के पहले बता दूँ हमारे शहर के सबसे अमीर व्यापारी के सपूत थे ... सो मास्साब लोग भी उस भीमकाया की जी हुजूरी में थे ... खैर
पेपर बंटा ... शांति से मैं अपना पेपर हल करने लगा ...
आगे वाले भैया अपने दोनों जेबों में नकल सामग्री भरे थे ... सो हर प्रश्न का उत्तर छांटते और फाड़ते ... सामग्री पुन: जेब के अंदर चली जाती ... कभी कभार मैं एक नजर उन पर मारता और फिर हल करने में लग जाता ...
ढाई घंटे में मैंने पेपर हल किया ... पर एक प्रश्न जेल्डाल विधि जो अपुन को न आती थी ... इस जुगाड़ में कि भैया जी कुछ मदद करें ... पर डर के मारे फ़िलहाल हिम्मत न हुई ...
समय बीता ... पेट में गुदगुदी शुरू ... समय और बीता ... पेट में गुड़गुड़ी भी शुरू ... और बीता तो सोचा ट्राई करने में क्या जाता? पूछते हैं ...
मैंने पीछे से पीठ में ऊँगली गपाई ... ज्यूँ ही ऊँगली हुई नहीं ... कातिलाना अंदाज दिखाते फ़ुटबाल भर चेहरा मेरी ओर घूमा ... बोला ... का है वे ??
गुटखा खाना का वे ?? मैं डर सहम कर दबी आवाज में ... भाई जी ... प्रश्न सात का ब मुझे नहीं आया ... आपको आया हो तो प्लीज बता सकते ...
बोला चुप बैठ ... गुटखा खाना तो खा ... डिस्टर्ब न कर ... फिर क्या चुप बैठ गया ...
समय और बीता ... अब तो पेट में कीड़े भी काटने लगे ... ऐसा होता भी है ... समय कम हो और काम ज्यादा ... तो जो भड़भड़ाहट होती ... उसकी कल्पना जरा कीजियेगा ...
पेपर ख़त्म होने में 15 मिनट शेष ... चैन न पड़ा ... फिर ऊँगली ... फिर वही अदा ... तीखा अंदाज ... भाई जी ... दिखा दीजिये ... न प्लीज
अबे घोड़े हो का ... दस बार कहूँ क्या एक बात ... मैं चुप ... शांत ... चेहरा लटकाये बैठ गया ... अनायास उसका मूड बदला ... उसने अपनी डेस्क पर कॉपी खोली ... बोला जल्दी कर ... जैसे भगवान साक्षात मिल गए ... हल्के से उठा ... कॉपी पर नजर ... मेरे परखच्चे उड़ गए ... पेज पर लिखा था ... राहुल पाकेट बुक्स इंटरमीडिएट रसायन विज्ञान द्वितीय प्रश्नपत्र मेरठ ... इसके बाद जेल्डाल विधि ... की हेडिंग पड़ी थी ... ठूंठ सा एक बारगी खड़ा रह गया ... फिर कहा भैया ये क्यों लिख दिए ?? बोला देख ज्यादा वकील न बन ... करना तो कर नहीं ये कॉपी बन्द। ..
मेरी बत्ती फ्यूज ... जो मौका मिला वो भी गया हाँथ से ... खैर मिन्नतें शुरू ... दुबारा माना ... अब पांच मिनट शेष ... मैं उसकी उन बातों को छोड़ उत्तर लिखता गया ... पेज के अंत में फिर एक अमरवाक्य ... क्र.प.उ।
सोचा कहूँ लेकिन अबकी हिम्मत न हुई ... और घंटी बजने तक मैंने उस प्रश्न को कर लिया ... घंटी बजी ... कॉपी जमा ...
लेकिन घण्टी के बाद भी सम्बंधित विषय के मास्साब को उसके एक स्थानीय परिचित मास्साब ले आये ... वो इसलिये कि उसकी कॉपी जमा होने से पहले कॉपी को एक बार वो चेक कर लें ... और कमियों का सुधार भी हो जाये ... और छोटे प्रश्न हल भी हो जाएँ ... मास्साब ने जैसे ही कॉपी देखी ... मास्साब अपना सर पकड़ गए ... बोले नकल करने की भी तुझे अक्ल नहीं ... गधा कहीं का ... काट इसे ... बड़ा आया राहुल पाकेट बुक्स इंटरमीडिएट मेरठ वाला ...
चार झापड़ कान के नीचे रसीद कर दिए ... चूँकि उसके परिचित थे ... तो बेचारा मूक होकर झापड़ खा सही कर कॉपी जमा किया ... मैं ये सारा दृश्य गैलरी में खड़ा देख रहा था ... वो ज्यूँ ही गुजरा। ..मैंने कहा ... भैया जी ... कहा था न मैंने कि ये सब आप क्या लिखे ?? और आप ....
इतना सुन आग बबूला ... बोला भाग जा नहीं इत्ते मारूँगा ... कि गिन न पायेगा ... बड़ो आओ वकील को लऊँ डा ... तू ही तो सारे फसाद की जड़ ... चल भाग ...
मैं पुंछ दबाया ... और भाग लिया ...
चलिए अब देखिये आज वही मुटल्ला लड़का सेठ बन गया ... फार्च्यूनर से चलता ... और एक हम खड़िया घिस रहे ...
इसी को कहते जब किस्मत में लिखे हैं घोड़े तो कहाँ से मिलेंगे पकौड़े ...
#विकास उदैनिया की दीवार से
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