क्यो है कौए और उल्लू में शत्रुता - कहानी
एक समय की बात है कि हंस, तोता, बगुला, कोयल, चातक, कबूतर, मुर्गा आदि प्रमुख पक्षियों की एक विराट सभा आयोजित की गई। उसमें यह विचार होने लगा कि यद्यपि गरुड़ हम पक्षियों का राजा है, किन्तु वह भगवान की सेवा में इतना व्यस्त रहता है कि पक्षियों का हित-साधन करने का उसको अवकाश ही नहीं।
तभी यह विचार आया कि ऐसे व्यर्थ के राजा का लाभ ही क्या है जो बहेलियों के पाश में बंधकर नित्य छटपटाने वाले हम पक्षियों की रक्षा भी नहीं कर सकता। जो राजा प्रजा की रक्षा नहीं कर सकता उसकी प्रजा कर्णधार रहित समुद्र में डूबने वाली नौका की भांति विनष्ट हो जाती है। शास्त्रों में कहा गया है कि अनुपदेष्टा गुरु, मूर्ख पुरोहित, अरक्षक राजा, अप्रियवादिनी स्त्री, ग्रामवासी गोपाल एवं वनवासी नाई इन छहों का परित्याग कर देना चाहिए। अतः उचित यही है कि हमें अपना कोई अन्य राजा चुन लेना चाहिए।
उस समय भद्राकार उल्लू को देखकर सब पक्षियों ने निश्चयपूर्वक कह दिया कि “उलूक हमारा राजा होगा।” उसी समय से राज्याभिषेक की सामग्री एकत्रित करना आरम्भ हो गया।
विविध तीर्थों का जल एकत्रित किया गया, 108 औषधिमूल लाये गए, एक सिंहासन बनाया गया, व्याघ्रचर्म लाया गया, दीप-मालाएं ला दी गई। एक ओर बाजे बजाने वाले बैठाये गए। बन्दी और चारण स्तुतिगान करने लगे, वैदिक पण्डितों ने समवेत स्वर में वेद-पाठ आरम्भ किया, युवतियां मंगलगान गाने लगीं।
राजमहिषी के पद पर कृकालिका नाम के पक्षी को बैठाया गया। ठीक उसी समय कहीं से एक कौआ उड़ता हुआ उधर आ गया। पक्षियों की भीड़ को देखकर उसको आश्चर्य हो रहा था कि यह कैसा सम्मेलन है जिसकी उसको सूचना भी नहीं? उधर उस कौए को देखकर पक्षियों में परस्पर खुसर-पुसर होने लगी। किसी ने कहा कि मनुष्यों में नाई, पक्षियों में कौआ, हिंसक, जन्तुओं में श्रृगाल और साधुओं में जैन भिक्षु अधिक चतुर और धूर्त होता है।
कौए ने उस समारोह में उपस्थित होकर जब महोत्सव का कारण जानना चाहा तो उसको बताया गया कि पक्षियों का कोई ठीक प्रकार का राजा नहीं है, अतः सर्वससम्मति से उल्लू को इस पद पर अभिषिक्त किया जा रहा है, इसी निमित्त यह आयोजन है। यह सुनकर कौए के मुख पर मुस्कान खेल गई। वह बोला, “मयूर, हंस, कोकिल, चक्रवात, शुक, हारीत, सारस आदि पक्षियों के होते हुए इस दिवान्ध और करालवदन वाले उल्लू का राज्याभिषेक किया जा रहा है, यह तो बड़ी अनुचित बात है। मैं तो इससे सहमत नहीं हूं।”
कौवे ने चिल्लाते हुए कहा कि यह फैसला हमें मंजूर नहीं है। राजा गरुड़ को भले ही हमारे पास आने का समय न मिलता हो, लेकिन जब भी मौका मिलेगा वह अवश्य आएंगे। मगर उल्लू को राजा बनाने का क्या लाभ, जिसे दिन में दिखाई ही नहीं पड़ता।वह हमारी परेशानियों को कैसे हल करेगा। वह दूसरों की बातें सुनकर फैसला करेगा जिसका परिणाम यह होगा कि चाटुकारों का बोलबाला हो जाएगा। किसी ने तर्क दिया कि उल्लू रात में देख सकते हैं इसलिए वह रात में हमारी समस्या सुलझा देंगे। कौवे ने कहा- ऐसा राजा मुझे मंजूर नहीं जो रात में आकर हमारी नींद हराम करे। फिर हम पक्षी रात में ठीक से देख नहीं पाते। हम पहचानेंगे कैसे कि उल्लू ही आया है।इस बात का लाभ उठाकर कोई राक्षस उसकी जगह आ सकता है और हमें मारकर खा सकता है।
यह कहकर उसने उल्लू के अनेक दुर्गुणों का बखान भी साथ ही कर दिया। उसने यह भी कहा कि गरुड़ हमारे राजा हैं। उनके नाम मात्र से ही सारे कार्य सिद्ध हो सकते हैं।पक्षियों ने मान लिया कि राजा ऐसा होना चाहिए, जिसे प्रजा के दुख-दर्द दिखाई तो पड़ें। अंत में गरुड़ को ही राजा बनाए रखने का फैसला किया गया।
और फिर महान व्यक्ति का नाम ग्रहण करने से ही कभी-कभी बहुत बड़ा बड़ा कार्य सिद्ध हो जाता है, चन्द्रमा का नाम लेने मात्र से ही शशक सरोवर में सुखपूर्वक रहने लगे थे।
संकलन : पूर्णिमा दुबे
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