माँ सती के नैन, नैना देवी मंदिर स्थान पर गिरे थे -
नैना देवी मंदिर 1177 मीटर की ऊंचाई पर जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश मे स्थित है. यहां कई पौराणिक कहानियां मंदिर की स्थापना के साथ जुड़ी हैं।
मंदिर में मां के दो नेत्र हैं, जो नैना देवी को दर्शाते हैं. यहां नैनी झील है. माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री सती का विवाह शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु वह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था।
एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहां यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी सती को निमंत्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुंची। जब सती ने देवताओं का सम्मान और अपने शिव का निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु: खी हो गईं।
यज्ञ के हवनकुंड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि मैं अगले जन्म में भी शिव की ही पत्नी बनूंगीं। आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल स्वरुप यज्ञ के हवन कुण्ड में स्वयं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूं।
जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उमा सती हो गयी, तो उनके क्रोध की सीमा न रही. उन्होंने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट कर दिया. सभी देवी-देवता शिव के इस रौद्र रुप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर डालें।
इसलिए देवी-देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध के शान्त किया। दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा मांगी। शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया. परन्तु सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश-भ्रमण करना शुरु कर दिया।
ऐसी स्थिति में जहां सती के शरीर के अंग गिरे वहां पर शक्ति पीठ हो गए। जहां पर सती के नयन गिरे थे. वहीं पर नैनादेवी धाम बन गया।
नैना देवी |
मंदिर में मां के दो नेत्र हैं, जो नैना देवी को दर्शाते हैं. यहां नैनी झील है. माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई।
पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री सती का विवाह शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, परन्तु वह देवताओं के आग्रह को टाल नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह न चाहते हुए भी शिव के साथ कर दिया था।
एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहां यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी सती को निमंत्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुंची। जब सती ने देवताओं का सम्मान और अपने शिव का निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु: खी हो गईं।
यज्ञ के हवनकुंड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि मैं अगले जन्म में भी शिव की ही पत्नी बनूंगीं। आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल स्वरुप यज्ञ के हवन कुण्ड में स्वयं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूं।
जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उमा सती हो गयी, तो उनके क्रोध की सीमा न रही. उन्होंने अपने गणों के द्वारा दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट कर दिया. सभी देवी-देवता शिव के इस रौद्र रुप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर डालें।
इसलिए देवी-देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध के शान्त किया। दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा मांगी। शिव ने उनको भी आशीर्वाद दिया. परन्तु सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर आकाश-भ्रमण करना शुरु कर दिया।
ऐसी स्थिति में जहां सती के शरीर के अंग गिरे वहां पर शक्ति पीठ हो गए। जहां पर सती के नयन गिरे थे. वहीं पर नैनादेवी धाम बन गया।
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