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Showing posts from August, 2014

सेब से फायदे

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सेब खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होता है। ये स्वादिष्ट ही नहीं बल्कि बहुत स्वास्थवर्धक भी होता है। यहाँ नीचे इससे मिलने वाले सभी फायदों के बारे में लिखा है। एक कहावत है कि रोजाना एक साब खाने से आप हमेशा डॉक्टर के पास जाने से बचे रहेंगे। इसमें एंटी आक्सीडेंट पाए जाते हैं जो की हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार के कैंसरो को बढने से रोकता है| सेब दिल की बिमारियों को भी ठीक कर देता है| सेब से बहुत से मिनरल्स (पोटाशियम, कैल्सियम, फोस्फोरोस और मग्नेशियम, आयरन, कापर और जिंक) होते हैं जो कि त्वचा, नाखुनो और बालों के स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होतें हैं| सेब खाने से दिमाग तेज होता है। पड़ने वाले बच्चो को तो सेब जरुर खाना चाहिए| सेब मे अधिक मात्रा मे एंटी आक्सीडेंट पाए जातें हैं जो कि कलोस्ट्रोल के लेवल को कम करने मे मदद करते हैं| सेब खाने हमारे शरीर के फेफड़े स्वस्थ रहते हैं। सेब हमारे शरीर मे ऐसे बेक्टेरिया को बढने मे मदद करता है जो हमारी पाचन प्रणाली को बढ़ाते हैं| सेब का जूस हमारे शरीर मे से सभी हानिकारक तत्वों को बाहर निकाल देता है जिससे हमारी किडनी और लीवर कि बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं| सेब मे...

गांधारी के शाप के बाद जानें कैसे हुई भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु

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महाभारत पर आधारित अधिकांश पौराणिक कथाओं की माने तो महाभारत की सभी घटनाओं के लिए भगवान श्रीकृष्ण को ही जिम्मेदार माना गया है. उन्होंने ही धर्म की संस्थापना के लिए महाभारत युद्ध को होने दिया लेकिन ऐसा करने के बाद अर्थात हस्तिनापुर में धर्म की संस्थापना के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने क्या खोया यह आज भी लोगों के लिए जिज्ञासा का विषय है|  गांधारी का शाप युद्ध के बाद महर्षि व्यास के शिष्य संजय ने जब गांधारी को इस बात की जानकारी दी कि अपने साथियों के साथ पांडव हस्तिनापुर में दस्तक दे चुके हैं तो उनका दुखी मन गम के सागर में गोते लगाने लगा, सारी पीड़ा एकदम से बाहर आ गई. उनका मन प्रतिशोध लेने के लिए व्याकुल हो रहा था इसके बावजूद भी वह शांत थी, लेकिन जब उन्हें यह पता चला कि पांडवों के साथ भगवान श्रीकृष्ण भी है तो वह आग बबूला हो गईं. वह सभा में जाकर श्रीकृष्ण पर क्रोधित होने लगी और कहा कि “तुम्हे विष्णु का अवतार कहा जाता है, तुम्हारी भगवान की तरह पूजा की जाती है लेकिन जो तुमने काम किया है वह काफी शर्मनाक है”|  महान तपस्विनी गांधारी आगे कहती हैं “अगर युद्ध का परिणाम पता था तो तुम...

नारंज व तुरंत की समस्या (ईरानी कहानी )

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पुराने समय की बात है एक राजा था जिसके कोई संतान नहीं थी। उसने हर दरवाज़ा खटखटाया कि उसे ईश्वर संतान दे किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ. उसने एक मनौती मानी कि यदि उसके यहां संतान होती है तो अपने महल के एक हौज़ को शहद से भरेगा और दूसरे को तेल से ताकि निर्धन लोग आएं, खाएं और ले जाएं. ईश्वर ने उसकी सुन ली. ईश्वर ने उसे एक पुत्र प्रदान किया. राजा की ख़ुशियों का ठिकाना नहीं रहा, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. उसने अपने पुत्र को दाया के हवाले किया ताकि उसे सही ढंग से बड़ा करे. उसने पुत्र के सुख के सारे सामान उपलब्ध कराए. पुत्र नाज़ व नख़रों के बीच बड़ा होता है, यहां तक ​​कि वह 18 वर्ष का हो जाता है। एक दिन वह महल में ईधर उधर टहल रहा था कि राजा की नज़र पुत्र के लंबे चौड़े डील डौल पर पड़ी, अचानक उसे अपनी मनौती याद आ गयी. उसने स्वयं से कहा कि मनौती की वजह से मेरे यहां संतान पैदा हुई किन्तु मैं मनौती भूल गया. उसने तुरंत अपने नौकरों को आदेश दिया कि महल के बाहर फ़ौरन दो हौज़ बनाये जाएं. जब हौज़ तैयार हो गये तो उनमें से एक में शहद भरा और दूसरे में तेल. उसके बाद आवाज़ देने वालों ने आवाज़ लगायी कि जो...

हलछठः श्रीकृष्ण के भाई बलराम का जन्म हुआ ,व्रत की कथा

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इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के भाई बलराम जी का जन्म हुआ था. बलरामजी का प्रमुख शस्त्र हल और मूसल है. इसलिए उन्हें हलधर कहते हैं. उन्हीं के नाम पर इस पर्व का नाम हल-षष्ठी पड़ा. क्योंकि इस दिन हल के पूजन का विशेष महत्व है. इस वर्ष 16 अगस्त को हलछठ है. देश के पूर्वी अंचल में इसे ललई छठ भी कहते हैं. इस व्रत को पुत्रवती स्त्रियां करतीं हैं. इस दिन हल द्वार जुता हुआ फल और अन्न ही खाया जाता है. इस दिन गाय का दूध, दही भी नहीं खाया जाता है. इस दिन भैंस का दूध, दही ही उपयोग में लाया जाता है. इस दिन स्त्रियां एक महुए की दातुन करतीं हैं. व्रत की कथा  कहते हैं बहुत समय पहले एक गर्भवती ग्वालिन के प्रसव का समय समीप आया. उसे प्रसव पीड़ा होने लगी. उसका दही भी बेचने के लिए रखा हुआ था. ऐसे में वह मटकी लेकर निकल पड़ी. चलते हुए वह एक खेत में पहुंची जहां और उसने एक पुत्र को जन्म दिया. उसने लड़के कपड़े में लपेटकर वहीं रख दिया और मटकियां उठाकर उठा कर आगे बढ़ गई. उस दिन हरछठ थी. उसका दूध गाय-भैंस का मिला हुआ था पर उसने अपने ग्राहकों को बताया कि दूध भेंस का ही है. जहां ग्वालिन ने बच्चे को रखा था वहां एक किसान हल ...

हनुमान जी को प्रसन्न करना हो तो रामजी का गुणगान करना चाहिए watch video

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कहते है राम कथा अगर कही होती है तो हनुमान जी किसी न किसी रूप में उपस्थित जरूर होते है. हनुमान जी राम कथा का आनंद लेते है और प्रसाद ले के जाते है. ऐसा ही कुछ नज़ारा रतलाम में देखने को मिला. यहाँ राम कथा चल रही थी तो एक वानर महाराज पहुँच गए और मंच पर स्वछंद विचरण करने लगे .  ऐसा कहा जाता है की यदि हनुमान जी को प्रसन्न करना हो तो राम जी  का गुणगान करना चाहिए. यहाँ भी  वानर महाराज काफी प्रसन्न मुद्रा मैं है . यहाँ तक की वहां बिराजमान महानुभावों से गले मिलते हुए दिखाई दे रहे है और वानर महाराज प्रसाद ले के ही जाते है .  

क्या आपको कुछ याद नहीं रहता...? स्मरण शक्ति बढ़ायें|

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आजकल अच्छा खान पान न होने की वजह से याददाश्त का कमजोर होना एक आम समस्या बन गई है।हर आदमी अपनी भूलने की आदत से परेशान है लेकिन अब आपको परेशान हो की आवश्यकता नहीं है क्योंकि आयुर्वेद में इस बीमारी को दूर करने के सरलतम उपाय बताए हैं। 1. सात दाने बादाम के रात को भिगोकर सुबह छिलका उतार कर बारीक पीस लें । इस पेस्ट को करीब 250 ग्राम दूध में डालकर तीन उबाल लगाऐं। इसके बाद इसे नीचे उतार कर एक चम्मच घी और दो चम्मच शक्कर मिलाकर ठंडाकर पीऐं। 15 से 20 दिन तक इस विधि को करने से याददाश्त तेज होती है। 2. भीगे हुए बादाम को काली मिर्च के साथ पीस लें या ऐसे ही खूब चबाचबाकर खाऐं और ऊपर से गुनगुना दूध पी लें। 3. एक चाय का चम्मच शंखपुष्पी का चूर्ण दूध या मिश्री के साथ रोजाना तीन से चार हफ्ते तक लें । विशेष:  सिर का दर्द, आंखों की कमजोरी, आंखों से पानी आना, आंखों में दर्द होने जैसे कई रोगों में यह विधि लाभदायक है ये पांच चीजे खाएंगे...तो याददाश्त कमजोर नहीं रहेगी किसी भी चीज को रखने के बाद उसे ढंूढने के लिए दिमाग पर जोर डालना पड़ता है। अगर आपके साथ भी यही समस्या है तो नीचे लिखी चीजों को अपने आहार में शाम...

अँगूठे से जानिए स्वभाव

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1. अँगूठा मानवीय चरित्र का सरलतम प्रतीक है। अँगूठा एक वह धुरी है जिस पर संपूर्ण जीवन चक्र घूमता  रहता है। सफलता दिलवाने वाला अँगूठा सुडौल, सुंदर और संतुलित होना चाहिए। उसकी इच्छा व तार्किक  बुद्धि एक-दूसरे के पूरक होने चाहिए। अँगूठे को मस्तिष्क का केंद्रबिन्दु बताया गया है।  अँगूठे में पहला पोर दृढ़ इच्छाशक्ति का सूचक है, दूसरा पोर तर्क और कारण का तथा तीसरा जो शुक्र पर्वत  को घेरता है, वह मनोविकार को प्रकट करता है। यह यदि पूर्ण भरा हुआ और पुष्ट होगा तो मानव मनोविकारों  के अधीन होगा।  यदि दूसरा पोर कमजोर हुआ तथा मनोविकार का पुष्ट हुआ तो मनुष्य पथभ्रष्ट हो जाता है। यदि  इच्छाशक्ति  कमजोर है तथा अंतिम दोनों पेरु अच्छे, सुसंगठित हैं तो मनुष्य लम्पट होगा और दुराचार तथा  अन्य दुर्गुणों  में फँस जाएगा। हाथ में अँगूठे की अपनी एक अनूठी विशेषता है। हाथ में इसका सुदृढ़ होना जीवन का संतुलित होना है। सुदृढ़  अँगूठे वाला व्यक्ति अपनी बात का धनी होता है, विचारों व सिद्धांतों का पक्का होता है। ऐसा व्यक्ति सोचे हुए  काम को करता है तथा समय का पाबंद...

पाप का चक्र

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पांडे जी का बेटा मेरा दोस्त था। हम दोनों बचपन में साथ खेला करते थे। मैंने देखा था कि पांडे जी की पत्नी अपनी सास से बहुत चिढ़ती थीं। वो जब भी खाना पकातीं तो अपनी सास को एक रोटी देकर चुपचाप खिसक लेतीं। दूसरी रोटी के लिए उन्हें पूछती भी नहीं। और जब सास दूसरी रोटी का इंतजार करते-करते थक जातीं, तो चुपचाप थाली छोड़ कर उठ जातीं। ऐसे चलता रहा सास बहू का द्वंद्व।  कई साल बीत गए। सास बूढ़ी होकर मर गईं। तब तक पांडे जी की पत्नी भी बूढ़ी हो चली थीं, और उनके बेटे की शादी भी हो गई थी। मैं एक बार फिर गांव गया तब तक पांडे जी का निधन हो चुका था, तो मैंने देखा कि पांडे जी की पत्नी छत पर बने उसी कमरे में अकेली लेटी थीं, जिसमें कभी उन्होंने अपनी सास को रखा था। वही बिस्तर, वही खटिया, सबकुछ वही। मुझे पल भर को लगा कि मैं पांडे चाची से नहीं, उनकी सास से मिल रहा हूं। थोड़ी देर में उनकी बहू थाली में एक रोटी लेकर आई और उसने उनके आगे रख दिया।  बहू नीचे चली गई तो पांडे चाची ने मुझसे कहा कि बहू बहुत खराब मिल गई है। मुझे उपर ला कर अकेला छोड़ दिया है। एक रोटी दे जाती है, दूसरी मांगने का मौका भी नहीं देती।...

नागपंचमी की कहानी .....

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प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चुके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी, परंतु उसके भाई नहीं था। एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने को पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी धलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहां एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा- 'मत मारो इसे? यह बेचारा निरपराध है।' यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक ओर जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा-'हम अभी लौट कर आती हैं तुम यहां से जाना मत। यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहां कामकाज में फँसकर सर्प से जो वादा किया था उसे भूल गई। उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो सब को साथ लेकर वहां पहुंची और सर्प को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली- सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा- 'तू भैया कह चुकी है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता। वह बोली- भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा माँगती हूँ, तब सर्प बोला- अच्छा, तू आज से मेरी बहिन हुई और मैं तेरा भाई ...