हनुमान की माता अंजना के अप्सरा से वानरी बनने की अद्भुत पौराणिक कथा

हनुमान के जन्म की दैवीय घटना की शुरुआत होती है ब्रह्मा , जिनके हाथ में पृथ्वी के सृजन की कमान है , के दरबार से ।  स्वर्ग में स्थित उनके महल में हजारों सेविकाएं थीं , जिनमें से एक थीं अंजना । अंजना की सेवा से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें मनचाहा वरदान मांगने को कहा ।

अंजना ने हिचकिचाते हुए उनसे कहा कि उन पर एक तपस्वी साधु का श्राप है , अगर हो सके तो उन्हें उससे मुक्ति दिलवा दें . ब्रह्मा ने उनसे कहा कि वह उस श्राप के बारे में बताएं , क्या पता वह उस श्राप से उन्हें मुक्ति दिलवा दें ।
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अंजना ने उन्हें अपनी कहानी सुनानी शुरू की ।  अंजना ने कहा ' बालपन में जब मैं खेल रही थी तो मैंने एक वानर को तपस्या करते देखा , मेरे लिए यह एक बड़ी आश्चर्य वाली घटना थी , इसलिए मैंने उस तपस्वी वानर पर फल फेंकने शुरू कर दिए ।  बस यही मेरी गलती थी क्योंकि वह कोई आम वानर नहीं बल्कि एक तपस्वी साधु थे . मैंने उनकी तपस्या भंग कर दी और क्रोधित होकर उन्होंने मुझे श्राप दे दिया कि जब भी मुझे किसी से प्रेम होगा तो मैं वानर बन जाऊंगी ।  मेरे बहुत गिड़गिड़ाने और माफी मांगने पर उस साधु ने कहा कि मेरा चेहरा वानर होने के बावजूद उस व्यक्ति का प्रेम मेरी तरफ कम नहीं होगा ' ।

अपनी कहानी सुनाने के बाद अंजना ने कहा कि अगर ब्रह्म देव उन्हें इस श्राप से मुक्ति दिलवा सकें तो वह उनकी बहुत आभारी होंगी ।  ब्रह्म देव ने उन्हें कहा कि इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए अंजना को धरती पर जाकर वास करना होगा , जहां वह अपने पति से मिलेंगी ।  शिव के अवतार को जन्म देने के बाद अंजना को इस श्राप से मुक्ति मिल जाएगी ।

ब्रह्मा की बात मानकर अंजना धरती पर चली गईं और एक शिकारन के तौर पर जीवन यापन करने लगीं . जंगल में उन्होंने एक बड़े बलशाली युवक को शेर से लड़ते देखा और उसके प्रति आकर्षित होने लगीं . जैसे ही उस व्यक्ति की नजरें अंजना पर पड़ीं , अंजना का चेहरा वानर जैसा हो गया ।  अंजना जोर - जोर से रोने लगीं , जब वह युवक उनके पास आया और उनकी पीड़ा का कारण पूछा तो अंजना ने अपना चेहरा छिपाते हुए उसे बताया कि वह बदसूरत हो गई हैं ।  अंजना ने उस बलशाली युवक को दूर से देखा था लेकिन जब उसने उस व्यक्ति को अपने समीप देखा तो पाया कि उसका चेहरा भी वानर जैसा था ।
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अपना परिचय बताते हुए उस व्यक्ति ने कहा कि वह कोई और नहीं वानर राज केसरी हैं जो जब चाहें इंसानी रूप में आ सकते हैं . अंजना का वानर जैसा चेहरा उन दोनों को प्रेम करने से नहीं रोक सका और जंगल में केसरी और अंजना ने विवाह कर लिया ।

भगवान शिव के भक्त होने के कारण केसरी और अंजना अपने आराध्य की तपस्या में मग्न थे . तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा ।  अंजना ने शिव को कहा कि साधु के श्राप से मुक्ति पाने के लिए उन्हें शिव के अवतार को जन्म देना है , इसलिए शिव बालक के रूप में उनकी कोख से जन्म लें ।

' तथास्तु ' कहकर शिव अंतर्ध्यान हो गए ।  इस घटना के बाद एक दिन अंजना शिव की आराधना कर रही थीं और किसी दूसरे कोने में महाराज दशरथ , अपनी तीन रानियों के साथ पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए यज्ञ कर रहे थे । अग्नि देव ने उन्हें दैवीय ' पायस ' दिया जिसे तीनों रानियों को खिलाना था लेकिन इस दौरान एक चमत्कारिक घटना हुई , एक पक्षी उस पायस की कटोरी में थोड़ा सा पायस अपने पंजों में फंसाकर ले गया और तपस्या में लीन अंजना के हाथ में गिरा दिया ।

अंजना ने शिव का प्रसाद समझकर उसे ग्रहण कर लिया और कुछ ही समय बाद उन्होंने वानर मुख वाले हनुमान जी को जन्म दिया । 

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