संस्कृत भाषा में चमगादड़ को "वाक-गुदम" अर्थात गुदा (मलद्वार) से बोलने वाला कहा गया है |

क्या आपको पता है कि दुनियाभर में 900 विभिन्न प्रकार की चमगादड़ पाई जाती हैं। इसकी ये सभी प्रजातियां उड़ सकती हैं। वैम्पायर चमगादड़ के अन्य प्रजातियों की तुलना में कम दांत होते हैं क्योंकि यह अपने खाने को चबाती नहीं है। यह सिर्फ अन्य प्राणियों के खून को अपना आहार बनाती है। दुनिया भर में चमगादड़ों की 1100 प्रजातियां हैं, जिनमें से महज तीन प्रजातियां वैंपायर यानी खून चूसनेवाली हैं। 
            वह भी इनसान का खून नहीं, बल्किमुर्गी, बत्तख, सुअर, कुत्ते, घोड़ों और बिल्लियों का।  बाकी सारी प्रजातियों के चमगादड़ कीड़े-मकोड़े, फल, मेंढक, मछली और फूलों का पराग भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं. अगर चमगादड़ कभी किसी इनसान की ओर बढ़ते भी हैं, तो हमला करना उनकी मंशा नहीं, बल्किहमारे आसपास उड़ रहे मच्छरों को खाना उनका लक्ष्य होता है. कारण चमगादड़ों में प्रतिध्वनि के आधार पर काम करनेवाला सोनार सिस्टम है. इसकी वजह से ये अपनी आवाज के मच्छरों तथा कीड़े-मकोड़ों से टकरा कर आनेवाली प्रतिध्वनि की मदद से आहार ढूंढ़ते हैं। 
ऑस्ट्रेलिया में पाए जाने वाले जानवर कोआला दिन में 14.5 घंटे आंखें बंद रखते हैं जबकि सबसे अधिक सोते हैं चमगादड़. जी हां. चमगादड़ दिन में 20 घंटे सोते हैं। 
चमगादड़ देख नहीं सकती यह उड़ते समय ध्वनि उत्पन्न करती है जो इसे रास्तों का ज्ञान कराती है। 
चमगादड़ ही एक ऐसा जीव होता है जो मुँह से मल-त्याग करता है और उसी मुँह से बोलता भी है | संस्कृत भाषा में चमगादड़ को "वाक-गुदम" अर्थात गुदा (मलद्वार) से बोलने वाला कहा गया है | ऐसे ही "वाक-गुदम" मनुष्य देह-धारियों में भी पाये जाते हैं - जो बोलते हैं तो मुँह से मल भी निकलता है |
कभी कभी तो भाषा-शास्त्र के विद्वानों तक को सन्देह हो जाता है कि ये "वाक-गुदम" मल त्याग की क्रिया कर रहे हैं अथवा बोलने की क्रिया !!! 
एक शोध से पता चलता है कि अगर बाहर चांदनी हो तो चमदागड़ डर जाते हैं और अंधेरे में जाकर छिपना ही पसंद करते हैं। अमेरिका के एक वैज्ञानिक डॉ कांबले ने अपने 14 साल के प्रयोग के आधार पर बताया है कि चमगादड़ मलेरिया फैलानेवाले मच्छरों के दुश्मन हैं. इसीलिए दुनिया भर से मलेरिया के समूल नाश के लिए चमगादड़ पालन पर जोर दिया जाना चाहिए. उनका मानना है कि चमगादड़ की एक प्रजाति का एक अकेला चमगादड़ तीन हजार से भी ज्यादा मच्छर एक घंटे में चट कर जाता है। 
चमगादड़ उड़नेवाले कीड़े-मकोड़ों की आबादी पर रोक लगाने का काम बखूबी करता है. जहां मच्छरों की तादाद बहुत अधिक है वहां भूरे रंग की प्रजाति का चमगादड़ एक घंटे में कम से कम 600-1200 मच्छरों को खा जाता है. एक शोध से पता चला है कि चमगादड़ों की एक बस्ती रात भर में 150 टन से भी ज्यादा मच्छर और कीट-पंतगों का सफाया कर देती हैं। 
इसी कारण वैज्ञानिकों की सिफारिश पर अमेरिका के हर शहर में बैट हाउस तैयार कर चमगादड़ पालन का काम शुरू हो गया है। 



अध्ययन से पता चला कि अंधकार में रहने वाले चमगादड़ों की तुलना में चाँदनी वाले इलाकों में रहने वाले चमगादड़ों की गतिविधियाँ कम हो जाती हैं.मेक्सिको में वैज्ञानिकों ने दुनिया भर के चमगादड़ों के रवैये का अध्ययन किया और ‘चाँद से खौफ़’ के बारे में जानने की कोशिश की। 

इसका कारण शायद ये हो सकता है कि जहाँ चाँदनी होती है, वहाँ रोशनी ज़्यादा रहती है और ऐसे में चमगादड़ आसानी से दूसरे पशु-पक्षियों का शिकार बन सकते हैं। 

ज्यादा दिन नहीं हुए जब कुछ टीवी चैनलों ने खुलासा किया था कि आसाराम बापू वशीकरण के लिए चमगादड़ के काजल का इस्तेमाल करते हैं। इसी के दम पर वे सेवक-सेविकाओं के अलावा भक्तों को वश में करते थे।

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