शंख की महिमा (महत्व )
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शंख दो प्रकार के होते हैं – दक्षिणावर्त एवं वामावर्त। दक्षिणावर्त शंख पुण्य योग से मिलता है। यह जिसके यहाँ होता है उसके यहाँ लक्ष्मी जी निवास करती हैं। यह त्रिदोषशामक, शुद्ध एवं नवनिधियों में से एक निधि है तथा ग्रह एवं गरीबी की पीड़ा, क्षय, विष, कृशता एवं नेत्ररोग का नाश करता है। जो शंख सफेद चन्द्रकान्तमणि जैसा होता है वह उत्तम माना जाता है। अशुद्ध शंख गुणकारी नहीं होते, उन्हें शुद्ध करके ही दवा के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। भारत के महान वैज्ञानिक श्री जगदीशचन्द्र बसु ने सिद्ध करके बताया है कि शंख को बजाने पर जहाँ तक उसकी ध्वनि पहुँचती वहाँ तक रोग उत्पन्न करने वाले कई प्रकार के हानिकारक जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। इसीलिए अनादिकाल से प्रातःकाल एवं संध्या के समय मंदिरों में शंख बजाने का रिवाज चला आ रहा है। संध्या के समय हानिकारक जंतु प्रकट होकर रोग उत्पन्न करते हैं, अतः उस समय शंख बजाना आरोग्य के लिए लाभदायक हैं और इससे भूत-प्रेत, राक्षस आदि भाग जाते हैं। औषधि-प्रयोगः मात्राः अधोलिखित प्रत्येक रोग में 50 से 250 मि.ग्रा. शंखभस्म ले सकते हैं। गूँगापनः गूँगे व्यक्ति के...