गीत लिखती चली जाऊं
कभी बैठाना ना मुझको
तुम अपनी ये पलकों पर ।
जो नजरें फ़ेर ली तुमने
तो निश्चय ही मैं मर जाऊं ।।
गर रखना है कहीं मुझको
तो दे दो कुछ जगह दिल में ।
जीते जी ही मैं तुझमें
मिलकर एक हो जाऊं ।।
मैं फ़िदा हैं तुझ पर यूं
कि दे सकती हूं जां तुझ पर ।
तेरी इक गरज पर माही
मैं खुद को वार ही जाऊं ।।
यार तेरी ही यारी में
मैं मदहोश हूं इतनी ।
कि लब जब भी कभी खुलते
गीत तेरे ही मैं गाऊं ।।
बस तेरी ही सूरत को
निरखती मैं रहूं पल ।
तेरे मदमस्त नैनों पर
गीत लिखती चली जाऊं.....
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