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Showing posts from August, 2013

मौत जिंदगी से कितनी बेहतर है ..

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काम में रूची काम को आसान बनाती है

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दुःख हरता शनि देव

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***| | दुःख हरता शनि देव | |*** शनि देव पर तेल चढाया जाता हैं, इस संबंध में आनंद रामायण में एक कथा का उल्लेख मिलता हैं। जब भगवान की सेना ने सागर सेतु बांध लिया, तब राक्षस इसे हानि न पहुंचा सकें, उसके लिए पवन सुत हनुमान को उसकी देखभाल की जिम्मेदारी सौपी गई। जब हनुमान जी शाम के समय अपने इष्टदेव राम के ध्यान में मग्न थे, तभी सूर्य पुत्र शनि ने अपना काला कुरूप चेहरा बनाकर क्रोधपूर्ण कहा- हे वानर मैं देवताओ में शक्तिशाली शनि हूँ। सुना हैं, तुम बहुत बलशाली हो। आँखें खोलो और मेरे साथ युद्ध करो, मैं तुमसे युद्ध करना चाहता हूँ। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा- इस समय मैं अपने प्रभु को याद कर रहा हूं। आप मेरी पूजा में विघन मत डालिए। आप मेरे आदरणीय है। कृपा करकेआप यहा से चले जाइए। जब शनिदेव लड़ने पर उतर आए, तो हनुमान जी ने अपनी पूंछ में लपेटना शुरू कर दिया। फिर उन्हे कसना प्रारंभ करदिया जोर लगाने पर भी शनि उस बंधन से मुक्त न होकर पीड़ा से व्याकुल होने लगे।हनुमान ने फिर सेतु की परिक्रमा कर शनि के घमंड को तोड़ने के लिए पत्थरो पर पूंछ को झटका दे-दे कर पटकना शुरू कर दिया। इससे शनि क...

जड़ और चेतन संतो के लिए एक ही है

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****|| जड़ और चेतन संतो के लिए एक ही है ||**** बोकुजु नामक एक साधू किसी गाँव की गली से होकर गुज़र रहा था. अचानक कोई उसके पास आया और उसने बोकुजु पर छड़ी से प्रहार किया. बोकुजु जमीन पर गिर गया, उस आदमी की छड़ी भी उसके हाथ से छूट गयी और वह भाग लिया. बोकुजु संभला, और गिरी हुई छड़ी उठाकर वह उस आदमी के पीछे यह कहते हुए भागा, “रुको, अपनी छड़ी तो लेते जाओ!” बोकुजु उस आदमी तक पहुँच गया और उसे छड़ी सौंप दी. इस बीच यह घटनाक्रम देखकर वहां भीड़ लग गयी और किसी ने बोकुजु से पूछा, “इस आदमी ने तुम्हें इतनी जोर से मारा लेकिन तुमने उसे कुछ नहीं कहा?” बोकुजु ने कहा, “हाँ, लेकिन यह एक तथ्य ही है. उसने मुझे मारा, वह बात वहीं समाप्त हो गयी. उस घटना में वह मारनेवाला था और मुझे मारा गया, बस. यह ऐसा ही है जैसे मैं किसी पेड़ के नीचे से निकलूँ या किसी पेड़ के नीचे बैठा होऊँ और एक शाखा मुझपर गिर जाए! तब मैं क्या करूंगा? मैं कर ही क्या सकता हूँ?” भीड़ ने कहा, “पेड़ की शाखा तो निर्जीव शाखा है लेकिन यह तो एक आदमी है! हम किसी शाखा से कुछ नहीं कह सकते, हम उसे दंड नहीं दे सकते. हम पेड़ को भला-बुरा न...

भगवन दिखाई नहीं देते मगर है जरुर

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*************|| भगवन दिखाई नहीं देते मगर है जरुर ||******************   एक दिन एक राजा ने अपने सभासदों से कहा, ‘क्या तुम लोगों में कोई ईश्वर केहोने का प्रमाण देसकता है ?’ सभासद सोचने लगे, अंत में एक मंत्रीने कहा, ‘महाराज, मैं कल इस प्रश्न का उत्तर लाने का प्रयास करूंगा।’ सभा समाप्त होने के बाद उत्तर की तलाश में वह मंत्री अपने गुरु के पास जा रहा था। रास्ते में उसे गुरुकुल का एक विद्यार्थी मिला। मंत्री को चिंतित देख उसने पूछा, ‘सब कुशल मंगल तो है ? इ तनी तेजी से कहां चले जा रहे हैं ?’ मंत्री ने कहा, ‘गुरुजी से ईश्वर की उपस्थिति का प्रमाण पूछने जा रहा हूं।’ विद्यार्थी ने कहा, ‘इसके लिए गुरुजी को कष्ट देने की क्या आवश्यकता है ? इसका जवाब तो मैं ही देदूंगा।’ अगले दिन मंत्री उस विद्यार्थी को लेकर राजसभा में उपस्थित हुआ और बोला, ‘महाराज यह विद्यार्थी आपके प्रश्न का उत्तर देगा।’ विद्यार्थी ने पीने के लिए एक कटोरा दूध मांगा। दूध मिलने पर वह उसमें उंगली डालकर खड़ा हो गया। थोड़ी-थोड़ी देर में वह उंगली निकालकर कुछ देखता, फिर उसे कटोरे मेंडालकर खड़ा हो जाता। जब काफी देर हो गई तो ...

पुदीने के चावल - कहानी

कहानी का नाम है  "पुदीने के चावल" राजा प्रताप सिंह अपने महल से निकले शिकार करने के लिए रथ मे बैठ कर. रानी चन्द्र देवी ने उनके पीछे पीछे एक और रथ में तरह तरह के स्वादिष्ट पकवान जेसे बेसन के लड्डू, बंदी के लड्डू, मेवा के लड्डू, आम पापड़ की बर्फी, बादाम की बर्फी, काजू का हलवा, फलो कीखीर,  देसी घी और दूध से बनी पुरिया और मीठे मीठे आम आदि रखवा दिए और साथ ही एक बड़े से मटके में ठंडा ठंडा पानी भी रखवा दिया.और  उन्हें लगा की ये सब भी कम हे तो तीन चार चांदी की सुराहियो में ठंडे, खस का शरबत, बादाम का शरबत भी रखवा दिया. राजा प्रताप सिंह के साथ उनके ४०-५० दरबारी भी गये साथ में. शिकार खेलते खेलते वो लोग दूर एक बहुत सुन्दर नदी के किनारे पे पहुँच  गए.अब सबने मिलकर नदी मे नहाना शुरू कर दिया. इधर तो राजा जी नहा रहे थे दरबारियों के साथ नदी के ठन्डे ठन्डे पानी में और वहीं एक बड़ा सा बंदरो का झुण्ड खाने का सामान रखे हुये बडे से रथ पर कूद गया. बस फिर तो बंदरो की मौज आ गयी. क्या खान था क्या शरबत था सब का सब उन्होंने खाय ा और खूब फेलाया.और वहां से चले गये. राजा और उनके दरबारी जब बाहर निकले...

जो बदल सकती हैं आपकी ज़िन्दगी !

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 जो बदल सकती हैं आपकी ज़िन्दगी ! एक मकड़ी थी. उसने आराम से रहने के लिए एक शानदार जाला बनाने का विचार किया और सोचा की इस जाले मे खूब कीड़ें, मक्खियाँ फसेंगी और मै उसे आहार बनाउंगी और मजे से रहूंगी . उसने कमरे के एक कोने को पसंद किया औरवहाँ जाला बुनना शुरू किया. कुछ देर बाद आधा जाला बुनकर तैयार हो गया. यह देखकर वह मकड़ी काफी खुश हुई कि तभी अचानक उसकी नजर एक बिल्ली पर पड़ी जो उसे देखकर हँस रही थी. मकड़ी को गुस्सा आ गया और वह बिल्ली से बोली , ” हँस क्यो रही हो?” ”हँसू नही तो क्या करू.” , बिल्ली ने जवाब दिया , ” यहाँ मक्खियाँ नही है ये जगह तो बिलकुल साफ सुथरी है,यहाँ कौन आयेगा तेरे जाले मे.” ये बात मकड़ी के गले उतर गई. उसने अच्छी सलाह के लिये बिल्ली को धन्यवाद दिया और जाला अधूरा छोड़कर दूसरी जगह तलाश करने लगी. उसने ईधर ऊधर देखा. उसे एक खिड़की नजर आयी और फिर उसमे जाला बुनना शुरू किया कुछ देर तकवह जाला बुनती रही , तभी एक चिड़िया आयी और मकड़ी का मजाक उड़ाते हुए बोली , ” अरे मकड़ी , तू भी कितनी बेवकूफ है.” “क्यो ?”, मकड़ी ने पूछा. चिड़िया उसे समझाने लगी , ” अरे यहां तो खिड...

मूली के उपयोग..

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*********** मूली के उपयोगी घरेलू  नुस्खे |*************** * मूली, शरीर से विषैली गैस कार्बन-डाई-आक्साइड को निकालकर जीवनदायी आक्सीजन प्रदान करती है। * मूली हमारे दाँतों को मज़बूत करती है तथा हडि्डयों को शक्ति प्रदान करती है। इससे व्यक्ति की थकान मिटती है और अच्छी नींद आती  है। * मूली खाने से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं तथा पेट के घाव ठीक होते हैं। * यह उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करती है तथा बवासीर और हृदय रोग को शान्त करती है। * इसका ताज़ा रस पीने से मूत्र संबंधी रोगों में राहत मिलती है। पीलिया रोग में भी मूली अत्यंत लाभदायक है। अफारे में मूली के पत्तों का  रस विशेष रूप से उपयोगी होता है। * मोटापा कम करने के लिए मूली बहुत लाभदायक है। इसके रस में थोड़ा-सा नमक और नीबू का रस मिलाकर नियमित रूप से पीने से मोटापा कम होता है और शरीर सुडौल बन जाता है। * पानी में मूली का रस मिलाकर सिर धोने से जुएँ नष्ट होती हैं। * विटामिन 'ए' पर्याप्त मात्रा में होने से मूली का रस नेत्रज्योति बढ़ाने में भी सहायक होता है। * मूली सौन्दर्यवर्धक भी है। इसके प्रतिदिन सेवन से रंग निखरता है।

मन के घोड़े

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एक व्यक्ति ने किसी साधु से कहा, "मेरी पत्नी धर्म-साधना-आराधना में बिलकुल ध्यान नहीं देती। यदि आप उसे थोड़ा बोध दें तो उसका  मन भी धर्म-ध्यान में रत हो।" साधु बोला, "ठीक है।" " अगले दिन प्रातः ही साधु उस व्यक्ति के घर गया। वह व्यक्ति वहाँ नजर नहीं आया तो साफ सफाई में व्यस्त उसकी पत्नी से साधु ने उसके बारे में पूछा। पत्नी ने कहा, "वे चमार की दुकान पर गए हैं।"  पति अन्दर के पूजाघर में माला फेरते हुए ध्यान कर रहा था। उसने पत्नी की बात सुनी। उससे यह झूठ सहा नहीं गया। त्वरित बाहर आकर बोला, "तुम झूठ क्यों बोल रही हो, मैं पूजाघर में था और तुम्हे पता भी था।" " साधु हैरान हो गया। पत्नी ने कहा- "आप चमार की दुकान पर ही थे, आपका शरीर पूजाघर में, माला हाथ में किन्तु मन से चमार के साथ बहस कर रहे थे।" पति को होश आया। पत्नी ठीक कह रही थी।  माला फेरते-फेरते वह सचमुच चमार की दुकान पर ही चला गया था। कल ही खरीदे जूते क्षति वाले थे, खराब खामी वाले जूते देने के लिए, चमार को क्या क्या सुनाना है वही सोच रहा था। और उसी बात पर मन ही मन चमार...

फिर किसी आहट का इंतज़ार हो जाए .

जब किसी से प्यार हो जाए ज़िन्दगी चीते की रफ्तार हो जाए  मिलता है कभी , जब भी दिल का साथी खिज़ा के दौर में भी बहार हो जाए . अमावस में ,भी चराग जलाने का मन नही करता जब किसी की याद दिल पे सवार हो जाए . उनसे रिश्ते की पाकीज़गी सलामत रहें सदा डरता हूँ , ना कोई इसमें दरार हो जाए उनकी जब भी खेर--खबर मिलती है धड़कता दिल , गुले--गुलज़ार हो जाए . यादें दोड़ती है , खरगोश सी , मासूम सी ,अच्छी सी चलों आज फिर किसी आहट का इंतज़ार हो जाए . # अशोक 

अम्मा मेरे बाबा को भेजो री / अमीर खुसरो

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अम्मा मेरे बाबा को भेजो री - कि सावन आया बेटी तेरा बाबा तो बूढ़ा री - कि सावन आया अ म्मा मेरे भाई को भेजो री - कि सावन आया बेटी तेरा भाई तो बाला री - कि सावन आया अम्मा मेरे मामू को भेजो री - कि साबन आया बेटी तेरा मामु तो बांका री - कि सावन आया