एक कमल ऐसा भी ...........

एक कमल ऐसा भी
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कमल के तीन भेद हैं । एक नीलकमल जिसे "इन्दीवर" कहतें हैं ।दूसरा लालकमल जिसे "पुण्डरीक"कहतें हैं एवं तीसरा श्वेतकमल जिसे "कोकनद" कहतें हैं । इन्दीवर वही है जिसे "राम की शक्ति पूजा" मे निरला जी ने शक्ति आराधन का साधन बनाया था और कोकनद इधर उधर नालों पोखरों मे कभी कभार विराजमान दिखाई दे जातें हैं ।
पुण्डरीक महाशय भारत के अन्य हिस्सों मे "लाल" ही सुनाई पडतें हैं लेकिन  बादाँ मे इनका रंग "भगवा" है ।भगवा पुण्डरीक केवल बाँदा मे ही मिलता है ।
कमल की समस्त कोटियों और विशेषताओं को धता बताते हुए इस पुण्डरीक के अजीबोग़रीब लक्षण हैं ये आम कमल जैसा कतई नहीं है इसमे जैवीय एवं अतिमानवीय लक्षण पाए जातें हैं ।आदमी जैसा चलना ,बैठना उठना सब कुछ इन्सानी हरकतें और अवगुण भी छल,धोखा , बकवास ,झूठ, कृतध्नता ,इत्यादि .....।ये कमल सूर्य के उदय अस्त से वास्ता नहीं रखता निजी स्वार्थ और पैसे से वास्ता रखता है ।पैसा लेकर खिलता है ।पैसा लेकर बन्द होता है ।पैसा लेकर ही अपनी सडांध (बताना भूल गया था ये कमल बदबूदार है) फैलाता ।
इसकी विशेषताएं वनस्पतिशास्त्र के लिए चुनौतीं हैं और कमल को अप्रस्तुत विधान के रूप मे प्रयोग करने वाले साहित्यकारों के लिए चिन्ता का विषय है । जो व्यक्ति इसको लगाता (रोपता) है उसी को बेंच देता है और तालाब मे खरपतवार की तरह कब्जा कर लेता है पानी स्वयम् पी लेता है अपनी बदबू से किसी नेकधर्मा पुष्प को तालाब की ओर देखना भी दूभर कर देता है ।
ये पुण्डरीक महाशय पैसे के लिए अपने जमीर नैतिकता चरित्र सब नीलाम कर देतें है । शाम होते ही इसमे शराब जैसी बू आती है और पियक्कड़ों की भाँति बहकता भी है अक्सर वो "ठेका देशी शराब" का बोर्ड हाथ मे लिए दिख जातें है ।
इनका साहित्यिक पहलू भी दिलचस्प है लेख की बजाय " ईर्ष्याशास्त्र" और दमित कुंठा की घृणास्पद अभिव्यक्ति मे इन्हे महारथ हासिल है और कविता तो इनकी "बाजारू" वृत्ति की सहायिका है पैसा मिले तो सरस सलिल के लिए भी लिख मारता है । कब्जावाद का साहित्यिक आन्दोलन इसी कमल की देन है । किसी की विरासत मे कब्जा कर उसी को नीचा दिखाना इनके बाएँ हाँथ का खेल है ।
ऐसा अजीबोग़रीब पुण्डरीक बाँदा मे पाया जाता है कभी लाल कमल के धोखे इसको भूल से अपना मत लीजिएगा जिसने गले लगाया उसी का गला और जेब दोनों कट गया है ।
 



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