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Showing posts from May, 2013

बनियों की गली(कहानी )

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सैयद जैगम इमाम (दोस्तों, नवोदित साहित्यकार सैयद जैगम इमाम की 30 नवम्बर 2009 को लोकार्पित इंकलाबी किताब “दोज़ख़” को मशहूर प्रकाशक राजकमल प्रकाशन ने बैस्ट सेलर की श्रेणी में शुमार किया है ) गली में बनियों का राज था। ढेर सारी दुकानें, आढतें और न जाने कितने गोदाम। सब के सब इसी गली में थे। बनिए और उनके नौजवान लडके दिन भर दुकान पर बैठे ग्राहकों से हिसाब किताब में मसरुफ रहते। शुरु -शुरु में वो इस गली से गुजरने में डरती थी, न जाने कब किसकी गंदी फब्‍ती कानों को छलनी कर दे। फ‍िर क्‍या पता किसी का हाथ उसके बुरके तक भी पहुंच जाए। डरते सहमते जब वो इस गली को पार कर लेती तब उसकी जान में जान आती। मगर डर का यह सिलसिला ज्‍यादा दिनों तक नहीं चला। उसने गौर किया ग्राहकों से उलझे बनिए उसकी तरफ ज्‍यादा ध्‍यान नहीं देते। हां इक्‍का दुक्‍का लडके उसकी तरफ जरुर देखते मगर उनकी जिज्ञासा उसके शरीर में न होकर के उस काले बुर्के में थी जिससे वो अपने को छुपाए रखती थी। वो पढती नहीं थी, छोटी क्‍लास के बच्‍चों को पढाती थी। तमाम शहर में मकान तलाशने के बावजूद जब उसके अब्‍बा को मकान नहीं मिला तो हारकर इस बस्‍ती का रुख करना प...

रुद्राक्ष

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 रुद्राक्ष : -         रुद्राक्ष दो शब्दों के मेल से बना है पहला रूद्र का अर्थ होता है भगवान शिव और दूसरा अक्ष इसका अर्थ होता है आंसू| माना जाता है की रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है| रुद्राक्ष भगवान शिव के नेत्रों से प्रकट हुई वह मोती स्वरूप बूँदें हैं जिसे ग्रहण करके समस्त प्रकृति में आलौकिक शक्ति प्रवाहित हुई तथा मानव के हृदय में पहुँचकर उसे जागृत करने में सहायक हो सकी|   रुद्राक्ष वृक्ष... रुद्राक्ष के वृक्ष भारत समेत विश्व के अनेक देशों में पाए जाते हैं. यह भारत के पहाड़ी क्षेत्रों तथा मैदानी इलाकों में भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं. रुद्राक्ष के वृक्ष सामान्यत: आम के वृक्षों की तरह घने एवं ऊंचे होते हैं. इनकी ऊँचाई ५० फुट से २०० फुट तक होती है.  रुद्राक्ष वृक्ष  के पत्ते लगभग ३ से ६ इंच तक लम्बे होते हैं. इसके फूल सफेद रंग के तथा फल गोलाकार हरी आभायुक्त नील वर्ग के आधे  एक इंच के होते   है    , इसके वृक्ष 50 से लेकर 200 फीट तक पाए जाते हैं तथा इसके पत्ते आकार में लंबे होते हैं. रुद्राक्ष के फूलो...

अक्षय तृतीया: महत्व और मान्यताएं

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अक्षय तृतीया  या आखा तीज वैशाख   मास में  शुक्ल पक्ष   की तृतीया   तिथि को कहते हैं। पौराणिक   ग्रंथों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है।  इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है  जो कभी नष्ट न हो  , यानी जिसका कभी क्षय न हो उसे 'अक्षय' कहते हैं। अंकों में विषम अंकों को (odd numbers) विशेष रूप से '3' को अविभाज्य यानी 'अक्षय' माना जाता है। तिथियों में शुक्ल पक्ष की 'तीज' यानी तृतीया को विशेष महत्व दिया जाता है। लेकिन वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को समस्त तिथियों से इतर विशेष स्थान प्राप्त है।                                 सतयुग  और  त्रेता युग  का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है।  भगवान  विष्णु   ने नर-नारायण,  हयग्रीव  और  परशुराम  जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था   ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। इस दिन श्री  बद्री...

भात का कर्ज-लघु कथा

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  उमेश मोहन धवन अरे कौन है वहाँ "रात के अँधेरे में बर्तनों की आवाज से जानकी की नींद खुल गयी. छत के रास्ते चोरी के इरादे से घुसा रामू भी घबरा गया. पर थोड़ी हिम्मत जुटाकर बोला "कुछ नहीं अम्मा. शहर गया था. लौटने में रात अधिक हो गयी . अगर तुम्हें ऐतराज न हो तो सुबह चला जाऊँगा." "नहीं बेटा मुझ बुढ़िया को भला क्या ऐतराज होगा. कही़ भी लेट जा. रामू एक कोने में लेट गया.  पर उसकी आँखों में नींद न थी. वह जल्दी से अपना काम करके भाग जाना चाहता था. एक छोटी टार्च जलाकर वह अलमारियों में कुछ ढूंढने लगा. रोशनी तथा आवाज से जानकी जाग गयी. "क्या ढूंढ रहा है रे. अरे मैं भी कितनी मूरख हूँ. तू भूखा होगा. मैने तुझे खाने को भी नहीं पूछा. क्या करूँ अकेली जो हूँ बेटा. बुढिया उठी और दिन का बचा भात उसके आगे रख दिया " अब यही बचा है तेरे नसीब का. शुक्र है आज तो यह मिल भी गया वरना कई बार तो पेट बाँधकर ही सोना पड़ता है. भीख मांगकर या चोरी करने से तो मर जाना ज्यादा अच्छा. पर बेटा बाहर किसी से न कहना कि अम्मा ने बासी भात खिला दिया वरना बड़ी बदनामी होगी. " "नहीं कहूँगा. मैं तो देवी ...

अनिष्ट निवारक शंख.....

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अनिष्ट निवारक शंख शंख निधि का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि इस मंगलचिह्न को घर के पूजास्थल में रखने से अरिष्टों एवं अनिष्टों का नाश होता है और सौभाग्य की वृद्धि होती है। भारतीय धर्मशास्त्रों में शंख का विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण स्थान है। मंदिरों एवं मांगलिक कार्यों में शंख-ध्वनि करने का प्रचलन है। मान्यता है कि इसका प्रादुर्भाव समुद्र-मंथन से हुआ था। समुद्र-मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में शंख भी एक है । विष्णु पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका सहोदर भाई है। अत यह भी मान्यता है कि जहाँ शंख है, वहीं लक्ष्मी का वास होता है। स्वर्गलोक में अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का महत्वपूर्ण स्थान है। भगवान विष्णु इसे अपने हाथों में धारण करते हैं। धार्मिक कृत्यों में शंख का उपयोग किया जाता है। पूजा-आराधना, अनुष्ठान-साधना, आरती, महायज्ञ एवं तांत्रिक क्रियाओं के साथ शंख का वैज्ञानिक एवं आयुर्वेदिक महत्व भी है। प्राचीन काल से ही प्रत्येक घर में शंख की स्थापना की जाती है। शंख को देवता का प्रतीक मानकर पूजा जाता है एवं इसके माध्यम से अभीष्ट की प्राप्ति की जाती है। शंख की ...

झटपट ढोकला....

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झटपट ढोकला  यदि आपको तुरत फुरत ढोकला बनाना हो तो आप झटपट ढोकला (Instant Dhokala) बना सकते हैं. ये खाने में स्वादिष्ट और पौष्टिक भी है. इसे बनाने में तेल बहुत ही कम ही लगता है और बनाने में इतना आसान कि कोई भी बना सकता है.आवश्यक सामग्री - ढोकला के घोल के लिये: बेसन - 100 ग्राम(एक कप) सूजी रवा - 100 ग्राम(एक कप) पानी - 100 ग्राम (आधा कप) दही - 200 ग्राम (1 कप, फैट लीजिये) हल्दी - चुटकी भर नमक - 1 छोटी चम्मच या स्वादानुसार ईनो पाउडर - —- 1 छोटी चम्मच तड़का लगाने के लिये: तेल - एक टेबल स्पून राई के दाने - एक छोटी चम्मच हरी मिर्च - 2 या 3 कटी हुई चीनी - एक छोटी चम्मच नमक - एक चौथौई छोटी चम्मच हरा धनियाँ - एक टेबिल स्पून कटा हुआ नारियल - एक टेबिल स्पून कद्दूकस किया हुआ (यदि नहीं हैतो कोई बात नहीं) बनाने की विधि किसी बर्तन में बेसन, सूजी और फैंटे हुये दही , हल्दी और पानी को डाल कर अच्छी तरह मिला लीजिये, घोल के अन्दर गुठले न बनें, घोल में नमक भी डालकर मिला दीजिये. ढोकला भाप से पकता है, इसलिये अब गैस जला कर कुकर मे 2 गिलास पानी डाल कर रख दीजिये, कुकर के सेपरेटर या एसा बर्तन जो कुकर में रखा ज...

भुल्ल्कड़.....हास्य कविता

भुल्ल्कड़~~ प्रितेश पाठक "यावर" मेरे साथ ये मुसीबत हैं, मुझे भूलने की आदत हैं| एक दिन... नहाकर निकला, बड़े मूड में गुनगुना रहा था, अखबार उठाया और वो गाना भूल गया| फिर एक दिन... दूध वाले को पैसे देने थे, कही भूल न जाऊ सोचकर, ५०० का नोट जेब से निकाला, कही रखकर भूल गया| कुछ दिन बाद... एक शाम "मोपासा" पढ़ने का मन किया, चाय बनाकर छत पर ले गया, कहानी पढते पढते पहली चुस्की ली, पता चला शक्कर भूल गया| फीकी चाय की चुस्की में, ज़ायके की तो बात न रही, पर उस शाम गाना याद आया, "दिल ढूंडता हैं फिर वही..." "मोपासा" की कहानी में भी, फिर दिलचस्प एक मोड आया, मैंने व्याकुल होकर पन्ना पलटा, तो ५०० का एक नोट आया, अफ़सोस फीकी चाय का भी, तब जताना फ़िज़ूल गया, एक चुस्की जब मीठी लगी, तो याद आया, शक्कर डाली तो थी, पर हिलाना भूल गया| कहता हू न... मेरे साथ ये मुसीबत हैं, मुझे भूलने की आदत हैं|                 http://www.tahriir.com/ से साभार _______________________

वक़्त नहीं ....

" **वक़्त  नहीं  **" हर   ख़ुशी   है  लोगों  के दामन  में , पर  एक  हंसी  के  लिए  वक़्त  नहीं . दिन  रात  दौड़ती  दुनिया  में , ज़िन्दगी  के  लिए  ही  वक़्त  नहीं . माँ  की  लोरी  का  एहसास  तो  है , पर  माँ  को  माँ  कहने  का  वक़्त  नहीं . सारे  रिश्तों  को  तो  हम  मार  चुके , अब  उन्हें  दफ़नाने  का  भी  वक़्त  नहीं . सारे  नाम  मोबाइल  में  हैं , पर  दोस्ती  के  लिए  वक़्त  नहीं . गैरों  की  क्या  बात  करें , जब  अपनों  के  लिए  ही  व क़्त  नहीं . आँखों  में  है  नींद  बड़ी , पर  सोने  का  वक़्त  नहीं . दिल  है  घावों   से  भरा  हुआ , पर  रोने  का  भी  वक़्त  नहीं...

सआदत हसन मंटो की कहानी- 'टोबा टेक सिंह'.

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                             सआदत हसन मंटो  की कहानी-  ' टोबा टेक सिंह ' . उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो (11 मई, 1912 – 18 जनवरी, 1955)  बँटवारे के  दो-तीन साल बाद पाकिस्तान और हिन्‍दुस्तान की हुकूमतों को ख्याल आया कि अख्‍लाकी कैदियों की तरह पागलों का भी तबादला होना चाहिए, यानी जो मुसलमान  पागल हिन्‍दुस्तान के पागलख़ानों में हैं, उन्हें पाकिस्तान पहुँचा दिया जाए और जो हिन्‍दू और सिख पाकिस्तान के पागलख़ानों में हैं, उन्हें हिन्‍दुस्तान के हवाले कर दिया जाए। मालूम नहीं, यह बात माक़ूल थी या  ग़ैर-माक़ूल, बहरहाल दानिशमन्‍दों के फ़ैसले के मुताबिक़ इधर-उधर ऊँची सतह की कान्फ्रेंसें हुईं, और बिलआख़िर एक दिन पागलों के तबादले के लिए एक दिन मुकर्रर हो गया। अच्छी तरह छानबीन की गई- वे मुसलमान पागल जिनके लवाहक़ीन हिन्‍दुस्तान में ही में थे, वहीं रहने दिए गए,  बाक़ी जो बचे, उनको सरहद पर रवाना कर दिया गया। पाकिस्‍तान से चूँकि क़रीब-क़रीब तमाम हिन्‍दू-सिख जा चुके थे,  इसलिए किसी को रखने-रखाने का...