बनियों की गली(कहानी )
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सैयद जैगम इमाम (दोस्तों, नवोदित साहित्यकार सैयद जैगम इमाम की 30 नवम्बर 2009 को लोकार्पित इंकलाबी किताब “दोज़ख़” को मशहूर प्रकाशक राजकमल प्रकाशन ने बैस्ट सेलर की श्रेणी में शुमार किया है ) गली में बनियों का राज था। ढेर सारी दुकानें, आढतें और न जाने कितने गोदाम। सब के सब इसी गली में थे। बनिए और उनके नौजवान लडके दिन भर दुकान पर बैठे ग्राहकों से हिसाब किताब में मसरुफ रहते। शुरु -शुरु में वो इस गली से गुजरने में डरती थी, न जाने कब किसकी गंदी फब्ती कानों को छलनी कर दे। फिर क्या पता किसी का हाथ उसके बुरके तक भी पहुंच जाए। डरते सहमते जब वो इस गली को पार कर लेती तब उसकी जान में जान आती। मगर डर का यह सिलसिला ज्यादा दिनों तक नहीं चला। उसने गौर किया ग्राहकों से उलझे बनिए उसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देते। हां इक्का दुक्का लडके उसकी तरफ जरुर देखते मगर उनकी जिज्ञासा उसके शरीर में न होकर के उस काले बुर्के में थी जिससे वो अपने को छुपाए रखती थी। वो पढती नहीं थी, छोटी क्लास के बच्चों को पढाती थी। तमाम शहर में मकान तलाशने के बावजूद जब उसके अब्बा को मकान नहीं मिला तो हारकर इस बस्ती का रुख करना प...