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Showing posts from April, 2021

कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ "राघवयादवीयम्"

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  ग्रन्थ "राघवयादवीयम्" क्या ऐसा संभव है कि जब आप किताब को सीधा पढ़े तो रामायण की कथा पढ़ी जाए और जब उसी किताब में लिखे शब्दों को उल्टा करके पढ़े तो कृष्ण भागवत की कथा सुनाई दे।   जी हां, कांचीपुरम के 17वीं शदी के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ "राघवयादवीयम्" ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है। इस अद्भुत रचना के रचने वाले श्री वेंकटाध्वरि का जन्म कांचीपुरम के एक गांव अरसनीपलै में हुआ था। इन्होंने कुल 14 रचनाएं लिखी हैं जिनमें से "राघवयादवीयम्" और "लक्ष्मीसहस्त्रम्" सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। वेंकटाध्वरि श्री वेदांत देशिक के शिष्य थे जिन्होंने इनको शास्त्रों की शिक्षा दी। वेदांत देशिक ने ही श्री रामनुजमाचार्य द्वारा स्थापित रामानुज सम्प्रदाय को वेडगलई गुट के द्वारा आगे बढ़ाया। बचपन में ही दृष्टि दोष से बाधित होने के बावजूद वे मेधावी वकुशाग्र बुद्धि के धनी थे। उन्होंने वेदान्त देशिक का, जिन्हें वेंकटनाथ (1269–1370) के नाम से भी जाना जाता है तथा जिनकी "पादुका सहस्रम्" नामक रचना चित्रकाव्य की अनुपम् भेंट है, अनुयायी बन काव्यशास्त्र में महारत हासिल ...

श्री राजा रामचन्द्र के अंत की व्यथा

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सरयू कितनी विचलित हो सकती थी? इतनी तो नहीं कि अयोध्या के नींद में अड़चन पड़े, परंतु अयोध्या के महाराज आज लगातार तीसरी रात गुप्तार घाट पे विराजमान थे। आधी रात बीतने को आयी थी। चंद्रमा अपने अर्द्ध आकार में श्री रामचंद्र के मस्तिष्क के ठीक ऊपर आकाश में सुसज्जित था। पूरा नगर किसी मृत प्रदेश के भाँति शांत पड़ा हुआ था। अगर शांति में कहीं विघ्न थी भी तो वो दूर कहीं मद्धम आवाज़ में आती नगर द्वारपाल की "जागते रहो" उवाच से या फिर सरयू की व्यथित लहरों से जो बारम्बार अपने आवेग में घाट पे बैठें रामचंद्र के चरणों को भिगो जाती। राम को सरयू से अथाह लगाव था और गुप्तार घाट से सरयू उन्हें किसी साथी जैसी प्रतीत होती थी। ये वर्षों का साथ था। पूर्व में जब भी राम गुरुकुल से अयोध्या लौटते तो भविष्य की योजनाओं का प्रारूप बनाते हुए नगर से दूर कई रातें उनकी यहीं बीतती लेकिन आज राम योजनाओं के साथ नहीं आये थे। आज राम अपनी व्यथाओं के साथ आये थे। घाट पे बैठे-बैठे श्री राम अयोध्या को भरपूर निहार रहे थे। यही अयोध्या जहाँ उन्होंने ने जन्म पाया, बालपन बिताया। जहां की गलियों में लक्ष्मण संग किशोरावस्था कटा यही ...