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Showing posts from December, 2015

विश्व के पहले शल्य चिकित्सक - आचार्य सुश्रुत

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विश्व के पहले शल्य चिकित्सक - आचार्य सुश्रुत || शल्य चिकित्सा के जनक: सुश्रुत सुश्रुत प्राचीन भारत के महान चिकित्साशास्त्री एवं शल्यचिकित्सक थे। उनको शल्य चिकित्सा का जनक कहा जाता है।  शल्य चिकित्सा (सर्जरी) के पितामह और 'सुश्रुत संहिता' के प्रणेता आचार्य सुश्रुत का जन्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व में काशी में हुआ था। इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की। सुश्रुत संहिता को भारतीय चिकित्सा पद्धति में विशेष स्थान प्राप्त है। (सुश्रुत संहिता में सुश्रुत को विश्वामित्र का पुत्र कहा है। विश्वामित्र से कौन से विश्वामित्र अभिप्रेत हैं, यह स्पष्ट नहीं। सुश्रुत ने काशीपति दिवोदास से शल्यतंत्र का उपदेश प्राप्त किया था। काशीपति दिवोदास का समय ईसा पूर्व की दूसरी या तीसरी शती संभावित है। सुश्रुत के सहपाठी औपधेनव, वैतरणी आदि अनेक छात्र थे सुश्रुत का नाम नावनीतक में भी आता है अष्टांगसंग्रह में सुश्रुत का जो मत उद्धृत किया गया है;।। वह मत सुश्रुत संहिता में नहीं मिलता, इससे अनुमान होता है कि सुश्रुत संहिता के सिवाय दूसरी भी कोई संहिता सुश्रुत के नाम से प्रसिद्ध थी सुश्रुत के नाम पर आयुर्वेद भी प...

रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान के प्रणेता - नागार्जुन

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रसायन-धातु कर्म विज्ञान के प्रणेता - नागार्जुन। रसायन विज्ञान और सुपर धातुशोधन के जादूगर - नागार्जुन सनातन कालीन विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में रसायन एवं धातु कर्म विज्ञान के सन्दर्भ में नागार्जुन का नाम अमर है ... ये महान गुणों के धनी रसायनविज्ञ इतने प्रतिभाशाली थे की इन्होने विभिन्न धातुओं को सोने (गोल्ड) में बदलने की विधि का वर्णन किया था। एवं इसका सफलतापूर्वक प्रदर्शन भी किया था। इनकी जन्म तिथि एवं जन्मस्थान के विषय में अलग-अलग मत हैं। एक मत के अनुसार इनका जन्म द्वितीय शताब्दी में हुआ था। अन्य मतानुसार नागार्जुन का जन्म सन् 9 31 में गुजरात में सोमनाथ के निकट दैहक नामक किले में हुआ था, रसायन शास्त्र एक प्रयोगात्मक विज्ञान है। खनिजों, पौधों, कृषिधान्य आदि के द्वारा विविध वस्तुओं का उत्पादन, विभिन्न धातुओं का निर्माण व परस्पर परिवर्तन तथा स्वास्थ्य की दृष्टि में आवश्यक औषधियों का निर्माण इसके द्वारा होता है। नागार्जुन ने रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान पर बहुत शोध कार्य किया। रसायन शास्त्र पर इन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिनमें 'रस रत्नाकर' और 'रसेन्द्र मंगल' बहुत प्रसिद...

महर्षि पाणिनि

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महर्षि पाणिनि - महर्षि पाणिनी महर्षि पाणिनि के प्राचीन प्रोग्रामिंग बारे में बताने पूर्व में आज की कंप्यूटर प्रोग्रामिंग किस प्रकार कार्य करती है इसके बारे में कुछ बताना चाहूँगी  आज की कंप्यूटर प्रोग्रामिंग भाषाएँ जैसे सी, सी ++, जावा आदि में प्रोग्रामिंग हाई लेवल लैंग्वेज (उच्च स्तर की भाषा) में लिखे जाते है जो अंग्रेजी के सामान ही होती है | इसे कंप्यूटर की गणना सम्बन्धी व्याख्या (संगणना के सिद्धांत) जिसमे प्रोग्रामिंग के सिंटेक्स आदि का वर्णन होता है, के द्वारा लो लेवल लैंग्वेज (कम स्तर की भाषा) जो विशेष प्रकार का कोड होता है जिसे न्यूमोनिक कहा जाता है जैसे जोड़ के लिए ADD, गुना के लिए एमयूएल आदि में परिवर्तित किये जाते है | तथा इस प्रकार प्राप्त कोड को प्रोसेसर द्वारा द्विआधारी भाषा (बाइनरी भाषा: 0101) में परिवर्तित कर क्रियान्वित किया जाता है | संगणना पर की इस प्रकार पूरा कंप्यूटर जगत थ्योरी निर्भर करता है | इसी संगणना पर महर्षि पाणिनि (लगभग 500 ई पू) ने एक पूरा ग्रन्थ लिखा था महर्षि पाणिनि संस्कृत भाषा के सबसे बड़े व्याकरण विज्ञानी थे | इनका जन्म उत्तर पश्चिम भारत के गांधार मे...