सुहागिन का आँगन
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बड़े से आँगन के बीचोंबीच एक चौड़े चबूतरे पर बनी एक पिंडी जिसके ऊपर लगा है तुलसी का वह घना पौधा। सौ-डेढ़ सौ साल पुराना तो जरूर होगा यह चबूतरा। चार पीढ़ी पहले बनवाया गया था। तब ईंट और मिट्टी का बना था वह। उस आँगन की चौथी पीढ़ी आज सिर्फ इतना ही जानती है इस पिंडी के विषय में। पर इतिहास इससे कहीं ज्यादा समृद्ध है इसका। कोई चार-पांच पीढ़ी पहले की बात है। तब यह आँगन गाँव का सबसे समृद्धशाली आँगन हुआ करता था। आँगन के चारों ओर मिट्टी के बाइस कमरे हुआ करते थे। परिवार भी काफी बड़ा था। दरवाजे पर हाथी विराजते थे। अगल-बगल के घरों में यदि पत्रादि आते तो पते में "हाथी-दरवाजा के निकट" लिखा होता। इसी आँगन की सबसे बड़ी बहू की असामयिक मृत्यु हो गई थी। बहू सुशीला थी। जबतक जीवित रही उतने बड़े परिवार को एक डोर में बांधे रखा। पर उसे जाने के बाद शान्ति नहीं मिली। उसका जीव भटकता रहा। कहते हैं मरने के बाद भी वह किसी ना किसी पर 'आती' रहती और आनेवाले खतरों के प्रति सचेत कर जाती। उससे किसी को कोई कष्ट ना था। फिर एक दिन उसने घर में अपने लिए "आसन" माँगा। तभी उसके छोटे देवर ने मिट्टी का वह च...