दबे पाँव 2 - वृंदावनलाल वर्मा
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पिछला पढे घायल सुअर का चिह्न लेते-लेते मित्र ने एक पत्थर के पास देखा तो राइफल की गोली के टुकड़े पड़े हुए हैं। मैं भी उनके पास पहुँच गया। मैंने बी वे टुकड़े देखे। वे बोले, 'भाई, मेरी गोली तो पत्थर पड़ी है, सुअर पर नहीं पड़ी है। वह आपका घायल किया हुआ सुअर था।' मैंने सोचा, मैं भी अपनी मूर्खता प्रकट कर दूँ। बंदूक चल पड़ने की सविस्तार कहानी सुनाकर कहा, 'नाल जरा ऊँची थी, नहीं तो गोली किसी हँकाईवाले पर पड़ती।' वे हँसकर बोले, 'यार मेरे, चुप भी रहो। न किसी से मेरी कहना, न अपनी।' हम दोनों ने अपनी झेंप पर परदा डाल लिया। मेरे एक मित्र (अब इस दुनिया में नहीं हैं) शिकार में काफी रुचि रखते थे अर्थात् जितनी का उनके खाने से संबंध था। स्थूल इतने कि बिना हाँफ के दस कदम भी चलना एक आफत। एक दिन बड़ा दंभ किया। बोले, 'मैं चलती मोटर में से जानवर पर बंदूक चला देता हूँ।' मैंने सिधाई के साथ पूछा, 'और वह जानवर को लग भी जाती है?' उन्होंने जरा हेकड़ी के साथ उत्तर दिया, 'नहीं तो क्या कोरे पटाखे फोड़ता हूँ!' मैंने उस समय बात नहीं बढ़ाई, परंतु उनकी परीक्षा लेने का निश्चय ...