बनियागीरी छोडो ?
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कई लोगो को देखा हैं ,राम ,अल्लाह या वाहे गुरु का नाम लेते समय गिनती करके लेते हैं ,जैसे उस पे बड़ा अहसान कर रहे हैं :). कई लोग मालाएं घुमाते हैं तो कई पेन से कोपी में लिखते हैं ,पर गिनती के बड़े पक्के हैं ,कितने नाम लिए कितने लेने हैं पूरा हिसाब किताब रखते हैं . सकाम भाव से साधना करने वालो ,तंत्र के साधको के लिए गिनती मायने रखती हैं क्यूँ कि उनको क्या प्राप्त करना हैं वो पहले से तय होता हैं ,वे लोग किसी विशेष सिद्धि या काम में सफलता के लिए निश्चित संख्या में पुरश्चरण करते हैं . निष्काम भाव या ईश्वर प्राप्ति करने के लिए माला या गिनती अवरोधक हैं . कहा भी गया हैं "माला तो मन की भली और काठ का भारा ,जो माला में गुण होवे तो क्यूँ बेचें मनिहारा " पर शुरुआती अवस्था मैं ये चीज़ समझ नहीं आती .विभिन्न तरह के लोग और सबके अलग अलग विचार किसको सही माने किसको गलत . एक कहानी के द्वारा अपनी बात रखना चाहूँगी -एक साधू १०८ मनियो की माला लेकर अपने इष्ट देवता के मन्त्र का पुरश्चरण करता था .सुबह नहा धोकर दूध पीकर मंत्र का जप शुरू करता सो दोपहर तक चलता ,भोजन करने के बाद फिर से जप शुरू ,यही क्रम रात को...