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सुआटा या नौरत या टेसू और झैंझी या झाँझी बुन्देलखण्डी लोक सांस्कृतिक परम्परा

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बुन्देलखण्ड में कुँवारी लड़कियों द्वारा खेला जाने वाला सुआटा अब लुप्त होता जा रहा हैं.टेसू या सुआटा की प्रतिमा या चित्र बनाकर सूर्योदय से पूर्व रंगोली बनाकर नवरात्रि की अष्टमी तक गीत गाते हुए कुवांरी लड़कियां सुआटा खेलती हैं। बालिकाएँ झाँझी, मिट्टी की छेददार हाँडी- जिसमें दिया जलता रहता है, लेकर एक घर से दूसरे घर फेरा करती हैं, झाँझी के गीत गाती हैं और पैसे माँगती हैं। ये गीत कथा की दृष्टि से अद्भुत, किन्तु मनोरंजक होते हैं। क्वार के महीने में शारदीय नवरात्र के अवसर पर लड़के टेसू के गीत गाते हैं और लड़कियाँ झाँझी के गीत गाती हैं। मुझे लगता है, दसवीं शताब्दी से शुरू हुआ सुआटा उस समय उठल पथल और बाहरी आक्रमणकारियों द्वारा वलात कन्याओं के अपरहण के डर से शुरू हुआ। जिसमें सुआटा (आक्रमणकारियों) की आराधना है, साथ ही सुआटा को खत्म करने वाली देवी (हिमानचलजू की कुँवर) की आराधना भी हैं। अष्टमी की रात्रि झिंझरी (छेदवाला मटका जिसमें जलते दिये की रोशनी फेलती हैं) लेकर घर - घर रोशनी फैलाने की चेष्टा करते हुए गाती हैं। "पूँछत-पूँछत आये हैं नारे सुआटा, कौन बड़े जू की पौर सुआ " घर से जब गृहणी न...