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आखिरकार कोई एक विकल्प

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आज एक रिक्शा सुबह से पीएचडी के पानी टंकी के पास लगा है, और वो शायद चालक ही है जो लुंगी और डीले-डाले कमीज में चप्पलों के साथ पैर से खेल रहा है। चेहरे की भाव-भंगिमा बता रही है कि आज उसने अन्न का एक दाना भी नहीं छुआ है। शायद झगड़ा कर के आया होगा, जोरु से? बीड़ी भी शायद आखिरी ही है ये। सुबह से 4-5 पी चुका है। आज कोई भी साथी-संगी नहीं आया है उसके पास उसकी बीड़ी को साझा करने, ना ही आज उसने किसी को टोका भी। रमेशरा एक बार व्यापार मंडल की सवारी लेकर गुजरा तो चिल्लाया कि "क्या कर रहा है हियाँ बैठे, हुआँ तुमरा इतंजार कर रहा है श्याम बाबू, गाँजा पिले हो का? जाओ जल्दी कोर्ट मोरनिंग है।" उसने पूरा अनसुना कर दिया। दो चार मर्तबे इधर उधर देखा तो पाया कि कोई उसकी ओर ताक भी नहीं रहा है। वो फिर मगन है अपने खेल में, तभी बच्चू आया और उसकी सोच रूपी तद्रा को भंग करते हुए झकझोर दिया फिर खींचकर उसे चाय की दुकान पर ले आया। ये उसका पक्का यार है। बच्चू ने पुछा "क्या हुआ है जो? एक भी सवारी नहीं उठा रहे हो आज?" "आज फिर छोटका को उसकी बड़की माय मार-मार के धाग दी है, चुन्निया को कल सांझ के बेला ...